Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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'तद्धिगुणदिगुणा" यह यहां पर बहुवचनका उल्लेख किया गया है। इस बहुवचनकी सामर्थ्य से है अतके सरोवर वा कमलसे उचरके सरोवर वा कमल लंबाई आदिमें दूने दूने हैं यह अर्थ है अन्यथा , 'तद्विगुणद्विगुणो' यह द्विवचनांत प्रयोग ही उपयुक्त था, वहुवचनका उल्लेख निरर्थक ही है। यदि यहां पर फिर यह शंका उठाई जाय कि-तिर्गिछ सरोवर वा कमल तक ही क्यों दूनापन लिया गया, केसरी 8 आदिमें भी क्यों दूनापनका व्यवहार नहीं ? इसका समाधान वार्तिककार देते हैं
व्याख्यानतो वक्ष्यमाणसंबंधाचानिष्टनिवृत्तिः॥४॥ व्याख्यानसे विशेष प्रतिपचि होती है यदि किमी प्रकारका सामान्यशास्त्र के विवेचनमें संदेह होजाय तो जिस सामान्य शास्त्रमें वह व्याख्यान है वह शास्त्र अप्रमाणीक नहीं माना जासकता। उसकी पुष्टि विशेषशास्रके व्याख्यानसे हो जाती है । यह सर्वमान्य निर्धारित वचन है। यद्यपि यहांपर सूत्रके अर्थकी सामर्थ्यसे केसरी आदिमें भी द्विगुणपना प्राप्त है परंतु शास्त्रका व्याख्यान यही है कि प्रथम पद्म सरोवर वा कमलसे तिगिंछ तक सरोवर वा कमल दूने दूने हैं आगे नहीं तथा अंतके पुंडरीक नामक सरोवर वा कमलसे उत्तरके पहिले सरोवर वा कमल दूने दूने हैं इसलिये तद्विगुणद्विगुणाः इस बहुवचनकी सामर्थ्य से केसरी आदिमें द्विगुणपना, जो कि अनिष्ट है, नहीं माना जा । सकता। ___अथवा-'उत्तरा दक्षिणतुल्या' अर्थात् उचरके सरोवर आदि दक्षिणके सरोवर आदिके समान हैं इस सत्रमें अंतके सरोवर वा कमलसे उत्तरके पहिले सरोवर वा कपलटनेटने यह वात कटीई है। इस सूत्रका तद्विगुणेत्यादि सूत्रमें संबंध है इसलिये अंतके सरोवरवा कमलसे उचरके पहिले सरोवर
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