Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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भाषा
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| मणिकांचन कूट ११ ये ग्यारहकूट हैं। इन समस्त कूटोंका प्रमाण क्षुद्र हिमवानके कूटोंके समान समझना ||७||
चाहिये। तथा इन कूटोंपर जो जिनमंदिर और प्रासाद हैं वे भी क्षुद्र हिमवान पर्वतके कूटॉपरके जिन | | मंदिर और प्रासादोंके समान समझ लेने चाहिये। शिखरी पर्वतके कूटॉपरके जो प्रासाद हैं उनमें अपने | अपने कूटोंके नामधारक देव और देवियां निवास करते हैं ॥११॥
हिमवन् आदि छह कुलाचलोंका रंग कैसा कैसा है ? यह बात प्रतिपादन करनकलिए सूत्रकार सूत्र कहते हैं
. .. हेमार्जुनतपनीयवैडूर्यरजतहेममयाः॥१२॥
हिमवानपर्वत सुवर्णमय अर्थात् पीतवर्णका है । महाहिमवान सफेद चांदीके समान रंगवाला है। 1|| तीसरा निषधपर्वत ताये सुवर्ण के समान है। चौथा नीलपर्वत वैडूर्यमय अर्थात मयूरके कंठके समान || नीले रंगका है। पांचवां रुक्मिपर्वत चांदीके समान सफेद वर्णका है और छठा शिखरी पर्वत सोनेके हूँ| समान पीतवर्णका है।
• हिमवान आदि पर्वत हेम आदि मय समझ लेने चाहिये । 'हेममया यहांपर जो मयट् प्रत्ययका विधान है वह हेम अर्जुन आदि प्रत्येक शब्दके साथ है । हेम आदिका संबंध जोडनकैलिए यहांपर क्रमसे हिमवान् आदिकी अनुवृति है अर्थात् हिमवान्पर्वत हेममय चीनपटकेसे वर्णका है। महाहिमवान अर्जुन | मय सफेद वर्णका है। निषध ताये हुए सुवर्णके समान मध्याह्नकालके चमचमाते सूर्यके तुल्य है । नील || पर्वत वैडूर्यमय मयूरकी गर्दनके समान नील रंगका है। रुक्मी पर्वत रजतमयी सफेदवर्णका है और शिखरी पर्वत हेममय चीनपटके वर्णका है। इन छहोंमें प्रत्येक कुलाचल अपनी.दोनों ओर आधे आधे
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