Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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धृतिकूट ६ सीतोदाकूट ७ पश्चिमविदेहकूट ८ और रुचककूट ९ ये नौ कूट हैं । क्षुद्राहिमवान् पर्वतके जरा कूटोंका जिसप्रकार वर्णन कर आए हैं उसीप्रकार इन कूटोंका भी वर्णन समझ लेना चाहिये । तथा
जिसप्रकार क्षुद्रहिमवान पर्वत पर मंदिर और प्रासाद कह आए हैं उसीप्रकार प्रमाणके धारक यहांपर भी जिनमंदिर और प्रासाद समझ लेने चाहिये । इस निषषपर्वतके कूटोंमें अपने अपने कूटोंके नामके धारक देव और देवियां निवास करती हैं। प्रश्न-नीलपर्वतकी नील संज्ञा कैसे है ? उत्तर
नीलवर्णयोगानीलव्यपदेशः॥७॥ नील वर्णके संबंधसे पर्वतका नील नाम है अथवा जिसप्रकार नवम वासुदेवकी कृष्ण यह संज्ञा है उसीप्रकार नील पर्वतकी 'नील' यह स्वतः सिद्ध संज्ञा है । प्रश्न-नील पर्वत कहां पर है ? उचर
विदेहरम्यकविनिवेशभागी॥८॥ ___ यह नील पर्वत विदेह और रम्यकक्षेत्रका रचनाका विभाग करनेवाला है। जिसप्रकार निषष पर्वतका
ऊपर प्रमाण बतला आए हैं उसीप्रकार इस नील पर्वतका भी समझ लेना चाहिये । अर्थात्9. चारसौ योजन तो नील पर्वत ऊंचा है। सौ योजन प्रमाण नीचे जमीनमें गहरा है। सोलह हजार % आठसौ व्यालीस योजन और एक योजनके उन्नीस भागों में दो भाग प्रमाण चौडा है । इसकी पूर्व हूँ, पश्चिमकी भुजामोंमें प्रत्येक भुजा बीस हजार एकसौ पैंसठ योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमें हूँ दो भाग एवं अर्धभाग किंचित अधिक है। उचर दिशाकी ओरकी प्रत्यंचा चौरानवे हजार एकसौ छप्पन है योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमें दो भाग कुछ अधिक है। इसकी प्रत्यंचाका धनुषपृष्ठ एक लाख
चौवीस हजार तीनसौ छियालीस योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमें नव भाग कुछ अधिक है।
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