Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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BARSHERE
.3 एकको महान कह दिया जाय तो चाहें दूसरेका शब्द द्वारा क्षुद्र रूपसे उल्लेख हो चाहे न हो अर्थतः ।
अध्याय पापा , उसे क्षुद्र समझ लिया जाता है। सूत्रमें हिमवान् और महाहिमवान दोनों शब्दोंका प्रयोग है इसलिये ४३
महाहिमवान् शब्दके प्रयोगसे दूसरा क्षुद्रहिमवान अर्थात् सिद्ध है। ___यह क्षुद्रहिमवान् पर्वत पच्चीस योजनप्रमाण नीचे जमीनमें गहरी नींवका धारक है । सौ योजन ऊंचा है एवं एक हजार बावन योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमें बारह भाग प्रमाण चौडा है। इस क्षुद्रहिमवान्पर्वतकी उत्तरकी ओरकी प्रत्यंचा चौबीस हजार नौसौ बचीस योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमें एक भाग कुछ कम है और इस प्रत्यंचाका धनुःपृष्ठ पचीस हजार दोसै तीस योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमें चार भाग कुछ अधिक है। तथा इसकी पूर्व पश्चिम ओरकी दोनों भुजाओंमें प्रत्येक भुजा पांच हजार तीनसे पचास योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमें पंद्रह भाग और कुछ अधिक अर्धभाग प्रमाण है।
उस क्षुद्रहिमवान्पर्वतके ऊपर पूर्वदिशामें सिद्धायतनकूट है जो कि पांचसै योजन ऊंचा है। मूल है। • भागमें पांचसै योजन, मध्यभागमें तीनसौ पचहचर योजन और ऊपरके भागमें ढाईसौ योजन चौडा है। है इसप्रकार ऊपर ऊपर चौडाई हीन होती गई है। इस सिद्धायतनकूटकी परिधि ऊंचाई चौडाई आदिसे है।
अधिक तिगुनी है । इस सिद्धायतनकूटके ऊपर अहंतभगवानका विशाल मंदिर है जो कि छत्तीस न ऊंचा, पचास योजन उत्तरदक्षिण लंबा, पचीस योजन पूर्वपश्चिम चौडा एवं पञ्चीस.योजनप्रमाण गिका धारक है तथा आठ योजनके ऊंचे, चार योजन चौडे और चार योजनप्रमाण ही प्रवेशोंके 8/८७९ उत्तर दक्षिण और पूर्ववर्ती द्वारोंसे भूषित है।
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