Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अब्बास
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है हैं तथा उनमें हर एक; चार चार तोरणोंकी धारक चौबीस चौबीस पद्मपरवेदिकाओंसे वेष्टित है।
.: इन चैत्यवृक्षपीठोंके मध्यभागमें सिद्धार्थ नामके चैत्यवृक्ष हैं जोकि समस्त प्रयोजनों को सिद्ध 2 करनेवाले भगवान तीर्थंकरों की प्रतिमाओंसे पवित्र हैं। सोलह योजन ऊंचे हैं। तया चार योजन
ऊंचे और एक योजनके चौडे स्कंधोंके धारक हैं और बारह योजन चौडी और बारह योजन ही मोटी शाखाओंके धारक हैं।
इन चैत्यवृक्षोंके आगे महेंद्र धज हैं जो कि भांति भांतिके मणि और रत्नमयी पीठों के धारक हैं। सोलह योजन ऊंचे और एक कोश लेबे चौडे हैं। इन महेंद्र धजोंके आगे नंदा नामकी वावडियां | है जो कि सौ योजन लंबी पचास योजन चौडी और दश योजन गहरी हैं। इन वावडियों के आगे अनि ई .. भगवानके मंदिरों के मध्यभागमें विराजमान देवच्छेद है जो कि सोलह पोजन लो, आठ योजन चे डे.
और आठ योजन ही ऊंचे रत्नमयी है। . 8. इन देवच्छंदोंके अंदर भगवान अहंत देवकी प्रतिमा विराजमान हैं जो कि पांचसै धनुषकी ऊंची . हैं सुवर्णमयी देहकी धारक और तपे सोनेके हथेली पावतली तालु और जिवाओंसे शोभायमान हैं। । हूँ उनके दोनों नेत्र लोहित मणिसे व्याप्त चिह्नों से युक्त स्फटिकमणिमया हैं । नेत्रों के तारे अरिष्टपणि ।
है (नीण मणि )मयी हैं। दातोंकी पंक्तियां चांदी सरीखा सफेद हैं। अमरपुर मूंगे कीमों लाल हैं। 10 अंजन माणके मूलभागके समान पक्ष्म और भृकुटियां हैं। नील मणिले रचे हुए शाम और स्वा
* केश हैं। जिनके दाही.वाही ओरः हाथों में सफेद और निर्मल चमकी मूठोंको लिो हुर, नानाप्रका- gc ? रके मणि और सुवर्णमयी आभरणोंसे शोमित यक्ष और नागोंके जोडे हैं जो प्रतिमा एक हजार आठ