Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
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__ यहांपर यह शंका न करनी चाहिये कि जब असुरकुमार भी देव कहे जाते हैं तब वे ऐसा नीच ३ कार्य क्यों करते हैं ? क्योंकि माया निदान और मिथ्यारूप तीन शल्य, तीव्रकषायका आचरण, पदार्थक
दोषोंकी अविचारिता, 'आगामीकालमें क्या होगा' इसप्रकारके विचारकान होना, पापके कारण खंरूप * पुण्य कर्मका होना, तथा पदार्थों के गुणोंको छोडकर दोषोंकी ही ओर झुकानेवाला तप, इन सवका यह * कार्य है कि अनेक प्रकारके प्रीतिके कारणों के विद्यमान रहते भी उनको अशुभही कार्य प्रीतिके उत्पादक हूँ होते हैं तथा यहांपर यह भी शंका न करनी चाहिये कि-जब छेदन भेदन आदिसे उनके शरीरके खंड
खंड कर दिये जाते हैं तब उनकी अकालमृत्यु क्यों नहीं होती ? क्योंकि ऊपर कह आये हैं कि औपपादिक जन्मवालोंको विष शस्त्र आदिके द्वारा अकालमृत्यु नहीं होती। नारकी भी औपपादिक जन्मवाले हैं इसलिये उनकी भी अकालमृत्यु नहीं हो सकती किंतु जघन्य मध्यम और उत्कृष्ट जैसा उन्होंने आयुका बंध किया है उसका विपाक अपने कालमें ही जाकर होता है किसी कारणसे उसकी वीचमें ही उदीरणा नहीं होती॥५॥
नारकियोंने जघन्य मध्यम और उत्कृष्टरूपसे जैसी भी आयु बांधी है उसका वीचमें विधात नहीं होता यह कहा गया है परंतु नारकियोंकी आयु कितनी कितनी है ? यह बात अभी नहीं बतलाई इसलिये सूत्रकार अब नारकियोंकी आयुका वर्णन करते हैं
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