Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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ARCH
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अध्याच
भाषा
| योजन ही चौडा तथा चारो आरसे पद्मवरवेदिकासे परिवेष्टित सिद्धायतन नामका कूट है । उसके
ऊपर उत्तर दक्षिण लंबा पूर्वपश्चिम चौडा (एक सिद्धकूट) जिन मंदिर है जो कि एक कोश लंबा, | १७
आधा कोश चौडा, कुछ कम एक कोश ऊंचा एवं पद्मावर वेदिकासे वेष्टित है । वह जिनमंदिर पूर्व उत्तर है और दक्षिण तीनों ओर विद्यमान तीन दरवाजोंसे विभूषित है एवं जिनमंदिरका जैसा वर्णन होना
चाहिये उसी वर्णनका स्थान है। PM उस जिनमदिरके पश्चिम भागमें दक्षिणार्घ भरतकूट १ खंडकापातकूट २ माणिकभद्रकूट ३ विजयाघ|| कूट ४ पूर्णभद्रकूट ५ तमिस्रागुहाकूट ६ उत्तरार्ध भरतकूट ७ वैश्रवणकूट ८ ये आठ कूट हैं । तथा ये |
आठो ही कूट सिद्धायतनकूटके समान ऊंचे चौडे और लंबे हैं। इन आठो कूटोंपर क्रमसे दक्षिणार्धभरत ! देव १ वृत्तमाल्यदेव २ माणिभद्रदेव ३ विजयागिरिकुमारदेव ४ पूर्णभद्रदेव ५ कृतमालदेव ६ उत्तरार्ध । भरतदेव ७ और वैश्रवण ८ देवोंके निवासस्थान हैं तथा वे निवासस्थान सिद्धायतनकूटके समान लंबे चौडे हैं और ऊंचे हैं। इसप्रकार मकटोंके समान नौ कटोंसे शोभित विजयार्घ पर्वत विशाल गिरिराजके समान शोभायमान होता है। हैमवतक्षेत्रका हैमवत नाम कैसे पडा ? वार्तिककार इस बातको बतलाते हैं
हिमवतोऽदूरभवः सोऽस्मिन्नस्तीति वा हैमवतः॥५॥. उस (हैमवत ) क्षेत्रके पासमें हिमवान् पर्वत है इसलिये अथवा हिमवान् पर्वतका धारक है इसलिए 18]] उस क्षेत्रका नाम हैमवत है । हिमवत् शब्दसे समीप वा 'वह जिसमें हैं इस अर्थमें अण् प्रत्यय करनेपर ४ा हैमवत शब्दकी सिद्धि हुई है । हैमवत क्षेत्र कहाँ है ? यह बात कही जाती है
. क्षुद्रहिमवन्महाहिमवतोर्मध्ये॥६॥ ।
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