Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्या
क्षुद्र हिमवान् पर्वतके उत्तरभागमैं और महाहिमवान् पर्वतके दक्षिण भागमें पूर्व और पश्चिम | समुद्रोंके बीचमें हैमवतक्षेत्र है।
तन्मध्ये शब्दवान् वृत्तवेताब्यः ॥७॥ ___ उस हैमवतक्षेत्रके मध्यभागमें एक शब्दवान् नामका वृत्तवैताब्य पहाड है जो कि नगाडेके समान गोल होनेसे सार्थक नामका धारक है। एक हजार योजनका ऊंचा है, ढाईसौ योजन जमीनमें गहरा है हा है। शिखरभागमें और मूलभागमें एक हजार योजन लंबा चौडा है । अपनी चौडाईकी अपेक्षा कुछ
अधिक तिगुनी परिधिका धारक है तथा आधे योजन चौडी, पर्वतकी परिधिके समान लंबी, एवं पूर्व | पश्चिम आदि चारो दिशाओंमें विद्यमान चार तोरणोंसे विभाजित ऐसी पद्मवरवेदिकासे विभूषित है। ___इस शब्दवान् वृत्तवैताब्यके तल पर दो कोश और बासठ योजन ऊंचा एवं एक कोश इक- 11 तीस योजन चौडा स्वाति देवोंके विहार करनेका मनोज्ञ स्थान है ॥ हरिक्षेत्रकी इरिवर्ष संज्ञा इस प्रकार है
हरिवर्णमनुष्ययोगाइरिवर्षः ॥८॥ ___हरिका अर्थ सिंह हैं और उसके परिणामोंको शुक्ल माना है । इरिक्षेत्रमें रहनेवाले मनुष्य सिंहके समान शुक्ल परिणामवाले और उसीके समान वर्णवाले होते हैं इसलिए उस संबंधसे क्षेत्रका नाम हरि| वर्ष है । हरिवर्ष कहांपर है ? उत्तर
निषधमहाहिमवतारंतराले ॥९॥ १-दूसरी प्रतिमें 'वृत्तवेदाव्यः' ऐसा भी पाठ है जिसका अर्थ-पहाडका नाम वृत्तवेदान्य है।
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