Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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भाषा
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द्विर्द्विर्विष्कंभाः पूर्वपूर्वपरिक्षेपिणो वलयाकृतयः ॥ ८ ॥
प्रत्येक द्वीप समुद्र गोल चूडीके आकार, पहिले पहिले द्वीप और समुद्रोंको घेरे हुए और एक दूसरे से दूने दूने विस्तारवाले हैं। अर्थात् जंबूद्वीपसे द्विगुणा चौडा लवणसमुद्र है। लवण समुद्र से द्विगुणा चौडा घातुकी खंड द्वीप है । धातुकी खंडसे दुना चौडा कालोद समुद्र है और कालोद समुद्र से दुना चौडा पुष्करवर द्वीप है इत्यादि ।
द्विर्द्विरिति वीप्साभ्यावृत्तिवचनं विष्कंभद्विगुणत्वव्याप्त्यर्थं ॥ १ ॥
प्रथम द्वीपकी जितनी चौडाई है उससे दूनी चोडाई प्रथम समुद्रको है । प्रथम समुद्रसे दुनी चौडाई दूसरे द्वीपकी है। दूसरे द्वीपसे दूनी चौडाई दूसरे समुद्रकी है इसप्रकार उत्तरोत्तर सर्वत्र चौडाईकी द्विगुणता बतलाने के लिये सूत्रमें 'द्विर्' शब्दका दो बार उल्लेख और सुच् प्रत्ययका प्रयोग किया गया है । द्विद्विर्विष्कंभो येषां ते 'द्विद्विर्विष्कंभाः' यह यहांपर द्विद्वैिर्विष्कंभ शब्दका समास है । शंका
अभ्यावृत्तिका अर्थ दो वार कथन करना है। जिसतरह 'दिर्दश' यहां पर सुच्प्रत्ययांत द्विशब्द के प्रयोगसे दशका दूना ( दो बार दश ) यह अभ्यावृत्ति अर्थ होता है उसीप्रकार दो हैं देश जिसमें वह द्विदश है इस बहुव्रीहि समासगर्भित द्विदश शब्दका भी वही अभ्यावृत्ति अर्थ होता है । तथा जिस अर्थकी सर्वत्र व्याप्ति हो वह वीप्सा है और वह भी समाससे द्योतित हो जाती है जैसे सात सात हैं पत्ते जिनमें वे सप्तपर्ण हैं इस बहुव्रीहि समासगर्भित सप्तपर्ण शब्द में वीप्सा अर्थ है अर्थात् सप्तपर्ण शब्दसे सात सात पचे वाले वृक्ष ही लिये जाते हैं इसीप्रकार - दो हैं विष्कंभ जिनमें वे द्विविष्कंभ हैं इसप्रकार द्विविष्कंभ शब्द से भी 'चौडाईका दुना' यह अभ्यावृत्ति और वीप्सा अर्थ हो जाता है फिर दो वार द्विशब्दका कहना और
अध्याय
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