Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
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वीसा अर्थका द्योतक सुचप्रत्ययका प्रयोग करना निरर्थक है ? सो ठीक नहीं । जहाँपर अभ्यावृति और वीप्सा दोनों अर्थ स्पृष्टतया जान पडें वहां तो 'सुच्प्रत्यय' और दो वार शब्दके प्रयोग करनेकी कोई
आवश्यकता नहीं किंतु जहाँपर वह अर्थ न प्रतीत हो सके वहां उसके प्रयोगकी आवश्यकता है। यहां | पर द्विविष्कभ शब्दके प्रयोगसे 'दुनी दूनी चौडाई है' यह अर्थ प्रतीत नहीं होता इसलिये उस अर्थक | द्योतनलिये 'द्विदिर' शब्दका प्रयोग निरर्थक नहीं । सारार्थ यह है कि यहांपर पहिले द्वीपसे पहिला | समुद्र दूना है पहिले समुद्रसे दूसरा द्वीप दूना है । दूसरे द्वीपसे दूसरा समुद्र दूना है यह अर्थ है । वह | अर्थ 'द्विििवष्कम' शब्दका उल्लेख विना किये हो नहीं सकता इसलिये उसका प्रयोग यहां अभीष्ट | अर्थका सूचक है।
अनिष्टविनिवेशव्यावृत्त्यर्थं पूर्वपूर्वपरिक्षेपिवचनं ॥२॥ जिसतरह गांव और नगर आदिकी रचना है उसप्रकार द्वीप समुद्र आदिकी रचना कोई न समझ बैठे इसलिये सूत्रमें पूर्वपूर्वपरिक्षेपी वचन है अर्थात् द्वीपको समुद्र, समुद्रको द्वीप चारों ओरसे वेडे हुए हैं किंतु एक दिशामें द्वीप हो और उसकी दूसरी दिशामें समुद्र हैं । इसप्रकार उनकी रचना नहीं। तथा है पूर्वपूर्वपरिक्षेपी शब्दके उल्लेखसे यह भी बात सिद्ध है कि द्वीप और समुद्र आपसमें अव्यवहित हैं है उनमें फासला कुछ भी नहीं है । पहिले पहिलेको वेडनेका ही जिनका स्वभाव हो वे पूर्वपूर्वपरिक्षपी कहे , जाते हैं। यहांपर भी यदि पूर्वपूर्व' यह वीप्साका उल्लेख नहीं किया जाता तो पहिले द्वीपको पहिला | समुद्र वेडे है,पहिले समुद्रको दूसरा दीप वेड़े है तथा दूसरे द्वीपको दूसरा समुद्र वेडे है और दूसरे समुद्रको | तीसरा द्वीप वेडे है यह अर्थ नहीं होता इसलिए इस अर्थकेलिये यहां दो वार पूर्वशब्दका उल्लेख है।
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