Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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चतुरस्रादिनिवृत्त्यर्थं वलयाकृतिवचनं ॥३॥ आकृतिका अर्थ संस्थान (आकार) है । वलयका अर्थ कंकण है जिसका वलय के समान आकार । हो वे वलयाकृति हैं अर्थात् ऊपर जिन द्वीप और समुद्रोंका उल्लेख किया गया है वे सब चूडी या कंकणके || समान गोल हैं चौकोन वा तीनकौंन आदि नहीं हैं। इसप्रकार द्वीप समुद्रका सूत्र में वलयाकृति विशे
|| षण करनेसे उनके चौकोन तिकौंन आदि आकारोंकी निवृत्ति है । इसरीतिसे अन्य अन्य मतवालोंने || III जो दीप और समुद्रोंका चौकोन आदि आकार कल्पित कर रक्खा है वह भ्रमपूर्ण है।
विशेष-समस्त दीप और समुद्र दूनी दूनी चौडाईवाले हैं । पहिले पहिलेको वेडे हुए हैं और ॥ || चूडीके समान गोल हैं ये जो सामान्यरूपसे सब द्वीप और समुद्रोंके विशेषण किये हैं वे बातें जंबूद्वीपमें |
लागू होती हैं या नहीं ? क्योंकि न जंबूद्वीप किसी दूसरे समुद्र वा द्वीपकी अपेक्षा दूनी चौडाईवाला है है न किसीको वेडे हुए है इसलिए ये विशेषण, जंबूद्वीपमें न घटनेप्से अव्याप्ति दोषग्रस्त है । इसका समामाधान यह है कि इसीलिये सूत्रकार मुख्यरूपसे जंबूद्वीपका स्वरूप समझाने के लिये 'तन्मध्ये भेरुनाभिर्वृतः । Hel इत्यादि सूत्रका उल्लेख करते हैं । तथा इन द्वीप और समुद्रोंकी स्थिति मध्यलोकमें ही समझ लेनी
चाहिये । क्योंकि अधोलोककी रत्नप्रभा आदि सात भूमियोंका उल्लेख किया जाचुका है। ऊभलोकका ७ वर्णन आगे है यहां क्रमप्राप्त मध्यलोक ही है॥८॥ ISIS जंबूद्वीपके प्रदेश रचना और चौडाईके जान लेनेपर ही अन्य द्वीप समुद्रोंकी चौडाई आदिका बारा ज्ञान हो सकता है अन्यथा नहीं क्योंकि जंबूद्वीपकी चौडाई आदि अन्य द्वीप समुद्रांकी चौडाई आदि |5
|| का मूल कारण है इसलिये सूत्रकार जंबूद्वीपकी चौडाई आदिका उल्लेख करते हैं
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लाल-उत्पन्न
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