Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
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लवणरसांबुयोगालवणोदः ॥२॥ ____लवणरस (नोनखरे रस) के धारक जलके संबंधसे समुद्रका नाम लवणोद है । उदक् शब्द चाहें । ॐ पूर्वपंद हो चाहें उचरपद हो, संज्ञा अर्थमें उसको उद आदेश हो जाता है ऐसा व्याकरणका सिद्धांत है। है अतः 'लवणोद' यहांपर उत्तरपद उदक् शब्दको उद आदेश हो गया है । जंबूद्वीपश्च लवणोदश्च जंबूद्वीप
लवणोदौ तावादी येषां ते जंबूद्वीपलवणोदादयः, यह यहांपर जंबूद्वीप-लवणोद-आदि शब्दका समास में है। द्वीपाश्च समुद्राश्च द्वीपसमुद्राः, यह यहाँपर द्वीप-समुद्र शब्दका समास है। जंबूद्वीपको आदि लेकर हूँ
दीप और लवणोदको आदि लेकर समुद्र यह यहां पर आनुपूर्वी क्रमसे संबंध है। तथा लोकमें जो जो है शुभनाम जान पडते हैं उन उन शुभ नामोंके धारक वे द्वीप और समुद्र हैं जिसतरह-जंबूद्वीप लवणोद। घातकीखंड कालोद पुष्करवर पुष्करोद वारुणीवर वारुणोद क्षीरवर क्षीरोदघृतवर घृतोद इक्षुवर इक्षुद नंदीश्वरवर और नंदीश्वरोद । इसप्रकार जंबूद्वीपको आदि लेकर स्वयंभूरमण द्वीपपर्यंत असंख्यात द्वीप
और लवणोदको आदि देकर खयंभूरमणोद पर्यंत असंख्याते समुद्र हैं। जिस असंख्यात प्रमाणसे यहां * पर दीप और समुद्रोंकी गणना की गई है वह ढाई सागरोपम कालके समयोंकी जितनी संख्या हो उतना समझ लेनी चाहिये ॥७॥
. अब जंबूद्धीप आदि बीप और लवणोद आदि समुद्रोंकी चौडाई, रचना और आकारकी विशेष प्रतीति करानेकेलिये सूत्रकार सूत्र कहते हैं
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