Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
बरा० भाषा
८२३
॥ ग्यारह भागोंमें तीन भाग है । उत्कृष्टस्थिति दो सागर और एक सागरके ग्यारह भागोंमें पांच भाग 15|| प्रमाण है। अजघन्योत्कृष्ट मध्यमस्थिति समयोचर है। नववें पाथडेमें नारकियोंकी जघन्यस्थिति दो | सागर और एक सागरके ग्यारह भागोंमें पांच भाग प्रमाण है । उत्कृष्टस्थिति दो सागर और एक सागरके ग्यारह भागोमें सात भाग प्रमाण है दश पाथडेमें नारकियोंकी जघन्यस्थिति दो सागर और एक सागरके ग्यारह भागोंमें सात भाग प्रमाण है । उत्कृष्टस्थिति दो सागर और एक सागरके ग्यारह | भागोंमें नौ भाग प्रमाण है । अजघन्योकृष्ट मध्यमस्थिति समयोत्तर है । ग्यारहवे पाथडेमें नारकियोंकी FI जघन्यस्थिति दो सागर ओर एक सागरके ग्यारह भागों में नौ भाग प्रमाण है । उत्कृष्टस्थिति तीन || सागरकी है। अजघन्योत्कृष्ट स्थिति समयोचर है।
तीसरे नरकमें नौ पाथडे बतलाये हैं। उनमें पहिले पाथडेमें नारकियोंकी जघन्यस्थिति तीन ॥ || सागरकी है। उत्कृष्टस्थिति तीन सागर और एक सागरके नौ भागोंमें चार भाग है । अजघन्योत्कृष्ट | है। मध्यमस्थिति समयोचर है । दूसरे पाथडेमें जघन्यस्थिति तीन सागर और एक सागरके नौ भागों में है
चार भाग है। उत्कृष्टस्थिति तीन सागर और एक सागरके नौ भागोंमें आठ भाग है। अजघन्योत्कृष्ट | स्थिति समयोचर है । तीसरे पाथडेमें नारकियोंकी जघन्यस्थिति तीन सागर और एक सागरके नौ भागोंमें आठ भाग है । उत्कृष्टस्थिति चार सागर और एक सागरके नौ भागोंमें तीन भाग है। अजघन्योत्कृष्ट मध्यमस्थिति समयोचर है । चौथे पाथडेमें नारकियोंकी जघन्यस्थिति चार सागर और एक सागरके नौ भागोंमें तीन भाग है । उत्कृष्टस्थिति चार सागर और एक सागरके नौ भागोंमें सात भाग है । अजघन्योत्कृष्ट मध्यमस्थिति समयोचर है। पांचवें पाथडे में नारकियोंकी जघन्यस्थिति चार सागर
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