Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
SACREACEBOBREACTERIALISAR
है।.उत्कृष्टस्थिति एक सागरके दश भागोंमें नौ भाग प्रमाण है और अजघन्योत्कृष्ट मध्यमस्थिति समयोत्तर है। तथा तेरहवें विक्रांत इंद्रकमें और उसकी आठो श्रेणियोंमें जघन्यस्थिति एक सागरके दश भागोंमें नौ भाग प्रमाण है । उत्कृष्टस्थिति एक सागर है और अजघन्योत्कृष्ट मध्यमस्थिति | समयोचर है। इसप्रकार यह प्रथम नरकके तेरह पाथडोंके नारकियोंकी जघन्य आदि स्थिति है।
शर्करा आदि भूमियोंमें प्रत्येक पाथडे में नारकियोंकी उत्कृष्टस्थिति करणसूत्रके अनुसार समझ लेनी चाहिये और वह इसप्रकार है| उपरि स्थितर्विशेषः स्वप्रतरविभाजितेष्टसंगुणितः। उपरिपृथिवी स्थितियुतः स्वेष्टमतरस्थितिमहती॥ । अर्थात्-जितने जितने जिस जिस भूमिमें प्रतर हैं एक सागरके उतने उतने ही भागोंमेंसे कुछ है कुछ भाग ऊपर ऊपरकी उत्कृष्टस्थितिमें मिला दिये जाय तो आगे आगैके प्रतरों में वही उत्कृष्टस्थिति | हो जाती है । जैसे-दूसरी पृथिवीमें ११ प्रतर हैं तो एक सागरके ग्यारह भागोंमेंसे दो भाग ऊपरकी उत्कृष्टस्थिति एक सागरमें मिला दिये गये तो वही (एक सागर और एक सागरके ग्यारह भागांमेंसे | दो भाग) दूसरी पृथिवीके प्रथम प्रतरकी उत्कृष्टस्थिति समझनी चाहिये । इस उत्कृष्टस्थितिमें यदि | एक सागरके ग्यारह भागोंमेंसे दो भाग और मिला दें तो (एक सागर और एक सागरके ग्यारह | भागोंमेंसे चार भाग) दूसरे पाथडेकी उत्कृष्टस्थिति हो जायगी । इत्यादि। ___ जो स्थिति ऊपर उत्कृष्ट है वह नीचे जघन्य है और वह सब जगह समय अधिक है। तथा | अजघन्योत्कृष्ट मध्यस्थिति समयोचर है । शर्कराप्रभा आदि भूमियों के पाथडोंमें रहनेवाले नारकियोंकी जघन्य आदि स्थितियोंका खुलासा इस प्रकार है--
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