Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
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हैं उनमें सौ तो चारो दिशाओंमें और छयानवे चारो विदिशाओंमें हैं। दूसरे त्रस्त पाथडे में चारो दिशा
ऑमें छयानवे और चारो विदिशाओं में बानवे इसप्रकार सब मिलकर एकसौ अठासी विले हैं। तीसरे ॐ तपन पाथडे में एकसौ अस्सी विले हैं उनमें बानवे तो चारो दिशाओंमें हैं और अठासी चारो विदि. ६ शाओं में हैं। चौथे आतपन पाथडे में चारो दिशाओंमें अठासी और चारो विदिशाओं में चौरासी इस
प्रकार सब मिलकर एकसौ बहचर विले हैं। पांचवे निदाघ पाथडेमें एकसौ चौसठ विले हैं उनमें चारो 8 टू दिशाओंमें तो चौरासी हैं और चारो विदिशाओंमे अस्सी हैं। छठे प्रज्वलित पाथडेमें चारो दिशाओंमें
अस्ती और चारो विदिशाओं में छहचर इस प्रकार सब मिलकर एकसौ छप्पन विले हैं। मातवे ज्वलित पाथडेमें एकसौ अडतालीस विले हैं उनमें छहचर तो चारों दिशाओंमें हैं और वहचर चारो विदिशाओं में हैं। आठवे संज्वलित पाथडेमें एकसौ चालीस विले हैं उनमें चारो दिशाओं में मिलकर वहचर हैं और चारो विदिशाओंमें अडसठ है । नवमे संप्रचालित पाथडे में सब मिलकर एकसौ वतीस विले हैं उनमें अडसठ तो चारो दिशाओं में हैं और चीप्तठ चारो विदिशाओंमें हैं। इसप्रकार ये सब मिलकर श्रेणिवद्ध विले चौदहसे छहचर हैं इन्हें हरएक पाथडेमें रहनेवाले नो इंद्रक विलोंके साथ जोडने पर वालुकाप्रभा ₹ भूमिमें श्रेणिवद्ध और इंद्रक विले चौदइसे पिचासी हैं तथा इसीमें चौदह लाख अठानवे हजार पांचसो है पंद्रह पुष्पप्रकीर्णक विले माने हैं इसरीतिसे मिलकर कुल विले वालुकाप्रभा नामकी तीसरी पृथिवीमें हूँ है पंद्रह लाख हैं।
पंकप्रभा भूमिमें सात पाथडे कह आये हैं। उनमें पहिली आर पाथडे में एकसौ चौबीस विले हैं 3 और वे चारो दिशाओंमें मिलकर चौसठ एवं चारो विदिशाओंमें साठ हैं। दूसरे मार पाथडे में चारो
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