Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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|| अध्याय
सरा आषा
III संतालीस सैंतालीस मिलकर चारों दिशाओंमें एक सौ अठासी और प्रयैक विदिशामें च्यालीप्स ६ छयालीस मिल कर चारों विदिशाओंमें एकसौ चौरासी चौरासी इस प्रकार दिशा विदिशाके सरा
| मिल कर तीनसौ बहचर हैं। चौथे भ्रांत पाथडेमें हर एक दिशामें छियालीस छियालीस चारों दिशाओंमें ||हूँ| || एकसौ चौरासी और हर एक विदिशामें पैंतालीस पैंतालीस मिल कर चारों विदिशाओंमें एकसो
| अस्सी इस प्रकार सब मिल कर तीनसौ चौंसठ विले हैं । पांचवें उद्घांत पायडे में हर एक दिशामें | | पैंतालीस पैंतालीस मिल कर चारों दिशाओं में एकप्तौ अस्ती और हर एक विदिशामें चालीस चालीस || मिल कर चारों विदिशाओंमें एकसौ छिहचर इस प्रकार सब मिले कर तीनसौ छप्पन विले हैं। छठे || ISI संभ्रांत पाथडे में प्रत्येक दिशामें चवालीस चवालीस मिल कर चारों दिशाओंमें एकसौ छि इचर और ॥5 all हर एक विदिशामें तेंतालीस तेंतालीस मिल कर चारों विदिशाओं में एकसौ बहचर इस प्रकार सब मिली
कर तीनसौ अडतालीस विले हैं। सातवें असंभ्रांत पाथडेमें हर एक दिशामें तेंतालीस तेंतालीस मिली कर चारों दिशाओंमें एकसौ बहचर और हर एक विदिशामें व्यालीस ब्यालीस मिल कर चारों विदिशाओंमें एकसौ अडसठ इस प्रकार सब विले तीनसौ चालीस हैं । आठवें विनांत पाथडेमें हर एक दिशामें ब्यालीस ब्यालीस मिल कर चारों दिशाओंमें एकसौ अडसठ और हर एक विदिशामें इकता.
लीस इकतालीस मिल कर चारों विदिशाओंमें एकसौ चौंसठ इस प्रकार सब मिल कर तीनसौ बचीस || विले हैं। नवमें तप्त पाथडे में हर एक दिशामें इकतालीस इकतालीस मिल कर चारो दिशाओंमें एक सौ || चौंसठ और हर एक विदिशामें चालीस चालीस मिल कर चारों विदिशाओंमें एकसौ साठ इस प्रकार हम सब मिल कर तीनसौ चौबीस हैं । दशौं त्रस्त पाथडेमें हर एक दिशा में चालीप चालीस मिल कर चारों
BARALEGAAMANASALA
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