Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
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हजार सातसै पैंतीस २९९७३५ है। दोनों राशियोंको आपसमें जोड देने पर सब विले पांचवीं भूमिमें तीन लाख ३००००० हैं। छठी घूमप्रभा भूमिमें श्रोणिवद्ध और इंद्रकविलोंकी संख्या त्रेसठि ६३ है और पुष्पप्रकीर्णक विले निन्यानवे हजार नौसै बत्तीस ९९९३२ हैं। दोनोंको आपसमें जोडने पर कुल विले उठी भूमिमे पांच कम एक लाख १९९९५ निन्यानवे हजार नौसै पिचानवे हैं। तथा सातवीं पृथिवीमें | अप्रतिष्ठान नामका एक ही इंद्रकविला है । काल महाकाल रोरैव और महारौरवके भेदसे चार श्रोणबद्ध मिले हैं। उनमें पूर्व दिशामें काल नामका विला है पश्चिम दिशामें महाकाल, दक्षिण दिशामें रौरव और उत्तर दिशामें महारौरव विला है । इस प्रकार सातवीं पृथिवीमें इंद्रक और अणिवद्ध पांच विले हैं। विदिशामें कोई श्रेणिवद्ध विला नहीं है । सातों भूमियोंके श्रेणिवद्ध और इंद्रक विमानोंकी कुलसंख्या
नो हजार छसौ त्रेपन ९६५३ है और पुष्पप्रकीर्णक बिलोंकी संख्या तिरासी लाख नब्बे हजार तीनसै दू संतालीस ८३९०३४७ है इसप्रकार रत्नप्रभा आदिसातोभूमियोंके कुल विलेचौरासी लाख ८४००००० हैं खुलासा इसप्रकार है--
सीमंतक पाथडेमें चारो दिशाओंमें हर एकमें उनचास उनचास श्रेणिवद्ध विले हैं और चारो दिशाओंमें हर एकमें अडतालीस अडतालीस श्रेणिवद्ध चिले हैं मिलकर चारो दिशाओं में एक सौ च्यानवे और विदिशाओंमें एकसौ बानबे हैं तथा इन दोनोंको आपसमें जोड लेनेपर सीमंतक पाथडेमें तीनसौ अठासी कुल विले हैं। दूसरे निरय पाथडेमें हर एक दिशामें अड़तालीस अड़तालीस मिलकर चारो दिशाओंमें एकसौ बानबे और हर एक दिशामें सैंतालीस सैंतालीस मिलकर चारो विदिशाओं में एक सौ अठासी इस प्रकार सब मिलकर तीन सौ अस्सी हैं । तीसरे रौरव पाथडेमें हर एक दिशामें
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