Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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बौद्धोंका सिद्धांत है कि वर्ण आदि परमाणुओंके समुदायस्वरूप रूप परमाणु यद्यपि अतींद्रिय हैं परंतु जिससमय एकत्र होकर उनका समुदाय हो जाता है उससमय वह समुदाय इंद्रियोंका विषय बन * जाता है इसलिये इंद्रियोंके विषयरूप समुदायसे घट पट आदि कार्योंकी उत्पत्ति होती है । सो ठीक
नहीं । जब हरएक परमाणु अतींद्रिय है-इंद्रियजन्य प्रत्यक्षका विषय नहीं तब उससे आभिन्न घट.पट आदि कार्य अतींद्रिय होंगे इसलिये उनका भी इंद्रियोंसे प्रत्यक्ष नहीं हो सकता। तथा-जिन पदार्थोका इंद्रियोंसे प्रत्यक्ष है उनका जहांपर यथार्थ रूपसे ज्ञान होता है वहां पर प्रमाण और विपरीत रूपसे ज्ञान होता है वहांप्रमाणाभास इसप्रकार प्रमाण प्रमाणाभासका भेदमानागया है । यदि अतींद्रिय परमाणुओंसे घट पट आदिकी उत्पचि मानी जायगी तो उन घट आदिका इंद्रियोंसे प्रत्यक्ष तो होगा नहीं फिरवादीने जो प्रमाण और प्रमाणाभासका भेद मान रक्खा है वह निरर्थक है । अर्थात् जब पदार्थों में इंद्रिय प्रत्यक्ष है योग्यता ही नहीं है तब प्रमाण और प्रमाणाभास भेद भी ज्ञानके नहीं बन सकते तथा परमाणु समूहके है इंद्रिय प्रत्यक्ष होनेसे जो घट पटादि कार्य अनुभवमें आते थे वे प्रत्यक्ष न होनेसे अनुभवमें नहीं आयेंगे वैसी अवस्थामें कार्यका अभाव होनेसे उनके कारण रूपसे संकल्पित किये गये परमाणु समुदायका भी अभाव समझा जायगा इसलिये घट पट आदिके अभावमें रूप परमाणुओंका भी अभाव कहना होगा और भी यह बात है कि
बौद्ध लोग रूप परमाणुओंको क्षणिक-क्षणविनाशीक और निष्क्रिय मानते हैं। जो पदार्थ क्षण है भरमें नष्ट हो जानेवाला और निष्क्रिय है उससे किसी पदार्थकी उत्पचि नहीं हो सकती इसलिए रूप है
परमाणुओंसे कभी घट पट आदि कार्योंकी उत्पचि नहीं हो सकती। तथा जिन पदार्थोकी सामर्थ्य
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