Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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व्याकरणशास्त्रों द्वंद्वसमासकी अपवाद स्वरूप एक प्रकारको 'एकशेष समास मानी है। उसका स०रा० भाषा तात्पर्य यह है कि समान पदार्थों का समास करनेपर एकशेष-एक पदार्थ अविशिष्ट रह जाता है और ॥ सब पदार्थोंका लोप हो जाता है जिसतरह 'पुरुषाः' 'पुरुषश्च पुरुषश्च पुरुषश्च पुरुषाः" यह एकशेष समास
है। यहां दो पुरुष शब्दोंका लोप हो जाता है एक पुरुष शब्द अवशेष रह जाता है और उससे प्रथमाके बहुवचनमें जस्.विभाक्त लाकर 'पुरुषाः' यह रूप सिद्ध कर लिया जाता है । चत्वारथ त्रयश्च त्रयश्र पंच च चतुस्नित्रिपंच यहाँपर जो ऊपर द्वंद समासका उल्लेख किया गया है वहांपर उसका अपवादस्वरूप एक | शेष समास मानलेना चाहिये और 'त्रयश्च त्रयश्च' यहांपर एक त्रि शब्दका लोपकर एकका ही उल्लेख 18|| करना चाहिये ? सो ठीक नहीं। यदि त्रिशब्दका एक शेष मानलिया जायगा तो यह जो भिन्न भिन्न 14 रूपसे संख्याविशिष्ट अर्थका बोध होता है कि-अज्ञान तीन प्रकारका है दर्शन तीन प्रकारका है, यह न हो
| सकेगा क्योंकि एकशेष किये जानेपर सूत्रमें एक ही त्रिशब्दका पाठ होगा वैसी अवस्खामें अर्थमें भ्रम से होनेकी संभावना है दूसरे यदि इस स्थलपर प्रधानतासे एकशेष समास ही रहता और समास न होता || तब तो कदाचित् उपर्युक्त अर्थकी संभावना कर ली जा सकती परंतु यहां तो प्रधान बहुव्रीहि समास
है। एक शेष समास मानलेनेपर भी बहुव्रीहि समासके सामने वह गौण गिना जायगा इप्सलिये वहांपर
त्रिशब्दका एकशेष समास मानलेने पर दो त्रिशब्दका अर्थ नहीं निकल सकता इसलिये वहां पर बंद ||६|| समास ही मानी जा सकती है एक शेष समासका संभव नहीं हो सकता। तथा- ..
एकशेष न कर जो त्रि शब्दका पृथक् उल्लेख किया गया है उससे ज्ञान चार प्रकार, अज्ञान नई तीन प्रकार, दर्शन तीन प्रकार, लब्धि पांच प्रकार हैं, इस क्रमको सूचित करना भी प्रयोजन है। यदि
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