Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
७१
555555545555RECHEA
प्राप्त करेंगे वे अनित्य निगोद जीव हैं। तथा पृथ्वी अपू तेज वायुमें भी प्रत्येकके सात सात लाख योनिः ||
|अबाव || भेद हैं वनस्पतिके दश लाख, दोइंद्रिय तेइंद्रिय और चौइंद्रियों से प्रत्येकके दो दो लाख, इस प्रकार है|
छह लाख, देव नारकी पंचेंद्रिय-तिर्यंचोंमेसे प्रत्येकके चार चार लाख और मनुष्योंके चौदह लाख योनिभेद हैं। इस प्रकार सब मिलकर ये चौरासी लाख भेद योनियोंके हैं। गोम्मटसारजीमें कहा भी है
णिच्चिदरधादुसच य तरुदसवियलिदिएसु छच्चेव । सुराणिरयतिरियचउरो चोद्दसमणुए सदसहस्सा ॥ ९ ॥ नित्येतरधातुसप्त च तरुदशविकलेंद्रियेषु षट् चैव ।
सुरनिरयतिर्यक्चतस्रः चतुर्दश मनुष्ये शतसहस्राः॥८९॥ नित्यनिगोद इतरानिगोद पृथिवी जल अग्नि वायु इन प्रत्येककी सात सात लाख, वनस्पतिकी || दश लाख, द्वींद्रिय तेइंद्रिय चतुर्रािद्रियमेंसे प्रत्येककी दो दो लाख इसप्रकार विकलेंद्रियोंकी मिलकर
छह लाख, देव नारकी और पंचेंद्रिय तिथंच इनमें प्रत्येककी चार चार लाख, मनुष्यकी चौदहलाख सब मिलकर चौरासी लाख योनि होती हैं । (जीवकांड) ॥३२॥
विशेष-आकार योनि और गुण योनिके भेदसे योनि दो प्रकारकी है यहांपर ये गुणयोनिकी अपेक्षा | भेद माने हैं आकार योनिके तीन भेद हैं-शंखावर्त, कूमानत और वंशपत्र । शंखावर्तयोनिमें गर्भ नहीं | || ठहरता। कूर्मोन्नतयोनिमें तीर्थकर चक्रवर्ती बलभद्र और उनके भाइयों के सिवाय कोई उत्पन्न नहीं होता और वंशपत्रयोनिमें बाकीके गर्भ जन्मवाले सब जीव पैदा होते हैं।
उपर्युक्त नौ प्रकारके योनि भेदोंसे जटिल संमूर्छन गर्भ और उपपाद इन तीनों प्रकारके जन्मोंका
%