Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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शेषाणां संमूर्छनं ॥३५॥ शेष अर्थात् गर्भ और उपपाद जन्मवाले जीवोंसे वाकी रहे हुए संसारी जीवोंका संमूर्छन जन्म है।
उभयत्र नियमः पूर्नवत् ॥१॥ ___ जरायुज अंडज और पोत जीवोंके ही गर्भजन्म होता है अन्यके नहीं जिसप्रकार यह ऊपर नियम कर आए हैं उसीप्रकार देव और नारकियोंके ही उपपाद जन्म होता है अन्यके नहीं। शेषोंका ही संमूछन जन्म होता है अन्यका नहीं यहां पर भी दोनों जगह यह नियम समझ लेना चाहिये । 'शेषाणां पर संमूर्छन' इस सूत्रमें जो शेष शन्दका उल्लेख किया गया है उससे यहां पर जन्मोंका ही नियम है जम्म
वान जीवोंका नियम नहीं क्योंकि जरायुज अंडज और पोत जीवोंके ही गर्भ होता है, देव और नार६ कियोंके ही उपपाद जन्म होता है ऐसे नियमके रहनेपर गर्भ और उपपाद दोनों जन्मोंका तो नियम | || हो जाता है अर्थात्-इनके सिवाय अन्यके गर्म और उपपाद नहीं होसकते परंतु जरायुज आदिके गर्भ
ही वा उपपाद ही जन्म होता है संमूर्छन नहीं' यह नियम नहीं होता इसलिए शेष ग्रहण किया गया है। । शेष ग्रहण करनेसे 'शेषोंके ही संमूर्छन जन्म होता है जरायुज आदिके नहीं यह नियम होनेसे जरायुज
वा देव आदिक उसकी योग्यता नहीं हो सकती। यदि जन्मवाले जीवोंका भी नियम माना जायगा तो || जरायुज अंडज और पोतोंके गर्भ ही जन्म होता है देव और नारकियोंके उत्पाद ही जन्म होता है इस
रीतिसे गर्भ और उपपादका तो नियम होगा नहीं किंतु जरायुज आदिका ही नियम होगा तब जहांपर || ६ संमूर्छन वा अन्य किसी जन्मका संभव होगा वहांपर नियमसे संमूर्छन ही जन्म होगा और कोई जन्म ६ नहीं हो सकता.फिर 'शेषाणां संमूर्छन' इस सूत्रमें शेप शन्द व्यर्थ ही हो जायगा इसलिए यहांपर जरा
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