Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अथ तृतीयाध्यायः।
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सम्यग्दर्शन आदिके भेदसे मोक्षमार्ग तीन प्रकारका कहा गया है उनमें सबसे प्रथम उद्दिष्ट सम्य-||5|| ग्दर्शनका विषय प्रदर्शन करनेकेलिये जीव आदि पदार्थों का उपदेश आवश्यक था इसलिये जीव |
आदि पदार्थों का निर्देश किया गया । अब उन जीव आदि पदार्थोंके रहनेका स्थान वर्णन करना | चाहिये वह स्थान लोक है अर्थात जीव लोकके भीतर रहते हैं वह लोक अधोलोक मध्यलोक और है। ऊर्ध्वलोकके भेदसे तीन प्रकारका है । उनमें क्रमप्राप्त सबसे पहले अघोलोकका वर्णन किया जाता है। है। अथवा
जब तक मनुष्यको सुख सामग्री प्राप्त रहती है तब तक उसे दुःखदायी भी विषयभोगोंसे संसारमें | वैराग्य नहीं होता किंतु जब दुःख भोगना पडता है उस समय उसे संसारके पदार्थों से एक दम संवेग हो
| जाता है और उससे सर्वथा संबंध छोडनेके लिए वह उद्यत हो जाता है। तीनों लोकोंमें नरकोंमें प्रचंड | शीत और उष्णताके कारण तीव्र वेदना है। उसे सुन कर जीवोंको वैराग्य हो जाय और वे अपने आत्म-|| कल्याणार्थ प्रवृत्त हो जाय इसलिये तीनों लोकोंमें सबसे पहले अधोलोकका वर्णन किया जाता है। अथवा
'भवप्रत्ययोऽवधिदेवनारकाणां' अर्थात् देव और नारकियोंके भवकारणक अवधिज्ञान होता है,
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