Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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य
अध्याय
आषा
७८७
इसलिए वह मूर्तिक तनुवातका आधार नहीं बन सकता ? सो भी ठीक नहीं। मेधको धारण करनेवाली | वायु आकाशके आश्रय रहती है यह सर्वसम्मत बात है इसलिए यहां अमूर्तिक भी आकाश जिस-|| प्रकार मेघको डाटनेवाली वायुका आश्रय माना जाता है उसी प्रकार वह तनुवातका आधार भी कहा ! जा सकता है कोई दोष नहीं है। यदि यहांपर यह कहा जाय कि
मेघको धारण करनेवाली वायुका आधार तो जल है, आकाश नहीं है इसलिए आकाशका | आश्रयपनारूप साध्यके न रहनेसे मेघधारण वायु' यह दृष्टांत साध्यविकल कहा जायगा ? सो ठीक ||४|| नहीं। वायुके अवयवस्वरूप अनंते वायुपरमाणु माने गये हैं और उन सबका आश्रय आकाश है यह || भी स्वीकार किया गया है । वे परमाणुरूप अवयव वायुस्वरूप अवयवीसे भिन्न नहीं इसलिए मेघ को
| धारण करनेवाली वायुका भी आश्रय: आकाश स्वतः सिद्ध है इस रीतिसे आकाशका आश्रयपनारूप | साध्यके न रहनेसे 'मेघधारणवायु' यह दृष्टांत साध्यविकल नहीं कहा जा सकता। तथा- - ॥ विपक्षमें जिस हेतुका न रहना संदेहरूप हो-निश्चितरूप न हो वह 'संदिग्धविपक्षव्यावृचिक हेतु' | कहा जाता है। तनुवातो व्योमप्रतिष्ठः, तनुवातविशेषत्वात अर्थात् तनुवात आकाशके आश्रय है
|| क्योंकि वह तनुवात विशेष स्वरूप है इस अनुमानमें तनुवातविशेषस्वरूप हेतुका तनुवातरूप पक्षसे || भिन्न पदार्थमें न रहना संदिग्ध नहीं निश्चित ही है, अर्थात् वह तनुवातरूप पक्षमें ही निश्चितरूपसे || रहता है तथा आकाशसे भिन्न अन्य कोई भी पदार्थ तनुवातका आधार भी नहीं सिद्ध हो सकता इसलिए अमूर्तिक भी आकाश तनुवातका आधार है यह वात सर्वथा युक्तियुक्त है । यदि यहाँपर यह शंका दि ७८० की जाय कि
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