Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
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|| बंधकी सघनतासे उसका परिमाण अल्प ही रहता है तथा रुई के पिंडमें कम परमाणु रहते हैं परंतु उनका FOR संयोग आपसमें शिथिल रहता है इसलिये उसका परिमाण आधिक होता है । उसीप्रकार यद्यपि उक्चर
उचर शरीर अधिक अधिक प्रदेशवाले हैं परंतु बंधकी सघनतासे उनका परिमाण अधिक नहीं हो जा सकता इसलिये प्रदेशोंकी अधिकतासे परिमाणकी भी अधिकता होनी चाहिए यह शंका निर्मूल
है॥३८॥ 5 तैजससे पहिले पहिलेके शरीर असंख्यात असंख्यातगुणे हैं यह ऊपर कहा गया है परंतु तैजस
और कार्मणके विषयमें कुछ नहीं कहा गया इसलिये वहांपर शंका होती है कि क्यों उन दोनोंके प्रदेश || समान हैं वा कुछ विशेष हैं ? इंस शंकाका समाधान सूत्रकार करते हैं
अनंतगुणे परे ॥ ३६॥ | शेषके तैजस और कार्मण ये दो शरीर अनंतगुणे परमाणुगाले हैं अर्थात्-आहारक शरीरसे 15 अनंतगुणे तैजस शरीरमें हैं और तैजस शरीरसे अनंतगुणे परमाणु कार्मण शरीरमें हैं।
___इस सूत्रमें प्रदेशतोऽसंख्येयगुणमित्यादि सूत्रसे 'प्रदेशतः' शब्दकी अनुवृत्ति है तथा अभव्यों का || || अनंतगुणा और सिद्धोंका अनंतवा भाग यहां गुणकार है इसलिये यहां पर यह संबंध है कि प्रदेशोंकी अपेक्षा आहारकसे तैजस शरीर अनंतगुणा है और तैजससे कार्मण शरीर अनंतगुणा है । शंका
अनंतगुणत्वादुमयोस्तुल्यत्वमिति चेन्नानंतस्यानंतविकल्पत्वात् ॥१॥ तैजस और कार्मण जब दोनों शरीर अनंत अनंतगुणे कहे गये हैं तब दोनों समान ही हो गये ?
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