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________________ 11 अध्याय ७२९ || बंधकी सघनतासे उसका परिमाण अल्प ही रहता है तथा रुई के पिंडमें कम परमाणु रहते हैं परंतु उनका FOR संयोग आपसमें शिथिल रहता है इसलिये उसका परिमाण आधिक होता है । उसीप्रकार यद्यपि उक्चर उचर शरीर अधिक अधिक प्रदेशवाले हैं परंतु बंधकी सघनतासे उनका परिमाण अधिक नहीं हो जा सकता इसलिये प्रदेशोंकी अधिकतासे परिमाणकी भी अधिकता होनी चाहिए यह शंका निर्मूल है॥३८॥ 5 तैजससे पहिले पहिलेके शरीर असंख्यात असंख्यातगुणे हैं यह ऊपर कहा गया है परंतु तैजस और कार्मणके विषयमें कुछ नहीं कहा गया इसलिये वहांपर शंका होती है कि क्यों उन दोनोंके प्रदेश || समान हैं वा कुछ विशेष हैं ? इंस शंकाका समाधान सूत्रकार करते हैं अनंतगुणे परे ॥ ३६॥ | शेषके तैजस और कार्मण ये दो शरीर अनंतगुणे परमाणुगाले हैं अर्थात्-आहारक शरीरसे 15 अनंतगुणे तैजस शरीरमें हैं और तैजस शरीरसे अनंतगुणे परमाणु कार्मण शरीरमें हैं। ___इस सूत्रमें प्रदेशतोऽसंख्येयगुणमित्यादि सूत्रसे 'प्रदेशतः' शब्दकी अनुवृत्ति है तथा अभव्यों का || || अनंतगुणा और सिद्धोंका अनंतवा भाग यहां गुणकार है इसलिये यहां पर यह संबंध है कि प्रदेशोंकी अपेक्षा आहारकसे तैजस शरीर अनंतगुणा है और तैजससे कार्मण शरीर अनंतगुणा है । शंका अनंतगुणत्वादुमयोस्तुल्यत्वमिति चेन्नानंतस्यानंतविकल्पत्वात् ॥१॥ तैजस और कार्मण जब दोनों शरीर अनंत अनंतगुणे कहे गये हैं तब दोनों समान ही हो गये ? REAKERARASTRORIETORIA GISGARGAHARASRELAGAIBCHCRASAUR ७२९
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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