Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
6
___ अंत्यचक्रधरवासुदेवादीनामायुषोऽपवर्तदर्शनादव्याप्तिः॥६॥ न वा चरमशब्दस्योत्तमविशेषणत्वात् ॥७॥ ___ लक्ष्यके एक देशमें ही लक्षणका रह जाना अव्याप्ति दोष कहा जाता है। चक्रवर्ती आदि उत्तम देहके धारी सब अनपवर्त्य आयुवाले हैं यहांपर यदि अनपवायुपनारूप लक्षण उत्तम देहके धारक
चक्रवर्ती आदि सबोंमें संघटित हो जाय तब तो वह निर्दोष माना जा सकता है किंतु बारहवें चक्रवर्ती ₹ ब्रह्मदच और नवमें अर्धचर्की (नारायण) कृष्ण एवं इनके सिवाय और भी उत्तम देहधारियोंकी आयु हैं का वाह्य कारणोंसे अपवर्त शास्रोंमें कहा गया है इसलिए उत्तम देहधारी ब्रह्मदच आदिमें लक्षणके न * घटनेके कारण वह अव्याधि दोषग्रस्त है ? सो ठीक नहीं। यहांपर चरम शब्दका उत्तम शब्द विशेषण में है। इसलिए जो चरम और उत्तम देहका धारक होगा वही अनपवयं आयुवाला हो सकता है किंतु
जो केवल उत्तम देहका धारक होगा वह अनपवर्त्य आयुवाला नहीं हो सकता । ब्रह्मदच और कृष्ण 8 आदिक यद्यपि उत्तम देहके धारक हैं परंतु चरमशरीरी नहीं इसलिए अनपवायुरूप लक्षणके है लक्ष्य न होनेके कारण उनमें लक्षण न जानेसे कोई दोष नहीं । यदि यहाँपर फिर यह शंका की है जाय कि- ।।
उत्तमग्रहणमेवेति चेन्न तदनिवृत्तः॥८॥ ____ सूत्रमें उत्तमशब्दका ग्रहण ही उपयुक्त है। उत्तम देहवाले ही अनपवनं आयुवाले होते हैं ऐसे में
अर्थमें कोई दोष नहीं, चरम शब्दका ग्रहण व्यर्थ ही है ? सो ठीक नहीं। ब्रह्मदच चक्रवर्ती और कृष्ण । ६ आदि भी उचम देहके धारक हैं परंतु वे अनपवर्त्य आयुवाले नहीं। यदि सूत्रमें चरम शब्दका ग्रहण न ६ किया जायगा तो ब्रह्मदत्त आदि उत्तम देहके धारकोंमें लक्षण न जानेसे ऊपर कहा हुआ अव्याप्तिदोष
COPIDAESAMEEGORRESPECIPES
SHORORSCResik
७६१