Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अम्पाव
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से मुक्त हो जी पडेगा, चिकित्सा कराना व्यर्थ है । निश्चित कालके भीतर मरण होता ही नहीं यह भी बात हु
नहीं क्योंक तलवार आदिसे मृत्यु होती दीख पडती है इसलिए अकालमृत्युमाननी पडेगी। यदि यहां पर यह शंका की जाय कि
तलवार वा विष आदिके द्वारा जो मरण होता है वह कालप्राप्त ही मरण है अकालपाप्त नहीं ? सो हूँ ठीक नहीं। क्योंकि वहांपर ये दो प्रश्न उठते हैं कि तलवार आदिसे जो मरण होता है वह, सामान्य हूँ रूपसे कालमें होता है कि मृत्यु के कालमें होता है ? यदि कहा जायगा कि प्राप्तकालमें होता है तब जो हूँ हूँ बात सिद्ध है उसीको सिद्ध किया क्योंकि सामान्यरूपसे किसी न किसी कालमें अवश्य मरण होगा ही हूँ , फिर तलवार आदिने क्या सिद्धि की । यदि यह कहा जायगा कि मृत्यु के कालमें तलवार आदिसे मरण
होता है तब तलवार आदिकी कोई अपेक्षा नहीं क्योंके तलवार आदि वाह्य कारणविशेषोंसे निरपेक्ष (अंतरंग) मृत्युकारणसे ही मृत्युकालमें मरण हो सकता है, मृत्युकालमें मरणकेलिए तलवार आदि वाह्यकारणोंकी कोई आवश्यकता नहीं किंतु तलवार आदि वाह्यकारणोंका अन्वय व्यतिरेक अकाल
मृत्युके साथ है अर्थात् तलवार आदिसे मरण होनेपर अकाल मृत्यु होती है और अकालमृत्यु के अभावमें ९ तलवार आदिसे मरण भी नहीं हो सकता। इसलिए जिससमय तलवार आदिसे मरण होगा वह समय *
अकालमृत्युका माना जायगा। तलवार आदिसे मरना प्रत्यक्ष सिद्ध है इसलिए अकालमृत्युका अभाव नहीं माना जा सकता। यदि अकालमृत्यु संसारमें न मानी जायगी तो आयुर्वेद संबंधी चिकित्साका मभाव मानना पडेगा क्योंकि अकालमृत्युकी रक्षार्थ आयुर्वेदसंबंधी चिकित्सा की जाती है जब 2 ७७० अकालमृत्यु ही नहीं तव आयुर्वेदसंबंधी चिकित्सा निरर्थक है। यदि यहॉपर यह कहा जायगा कि