Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अम्बार
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ALCURNAKARAULAKERSISTAN
सर्वशन्दो निरवशेषवाची ॥१॥ यहाँपर सर्व शब्दका निरवशेष अर्थ है अर्थात् ये दोनों शरीर समस्त संसारी जीवोंके होते हैं।
संसरणधर्मसामान्यादेकवचननिर्देशः॥२॥ 'सर्वस्य' यह जो एकवचनका उल्लेख किया गया है संसरणरूप सामान्य धर्मकी अपेक्षा है अर्थात् तैजस और कार्मण ये दोनों शरीर सामान्यरूपसे सब संसारियों के होते हैं यदि किसीके वे दोनों शरीर न होंगे तो वह संसारी ही नहीं कहा जा सकता ॥४२॥ ___औदारिक आदि पांचो शरीर संसारी जीवोंके होते हैं यह सामान्यरूपसे कहा गया है, एकसाथ कितने तक हो सकते हैं यह नहीं कहा गया इसलिये जब एकसाथ आत्माम पांचो शरीरोंका प्रसंग आया
तब एक साथ एक आत्माके कितने शरीरोंका संभव हो सकता है यह बात बतलानेकेलिए सूत्रकार ६ कहते हैं
तदादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुर्यः॥४३॥ ___ इन दोनों शरीरोंको आदि लेकर एक जीवके एकसाथ चार शरीर तक हो सकते हैं। अर्थात् दो |' हो तो तैजस कार्मण होते हैं। तीन हों तो औदारिक तैजस और कार्मण होते हैं अथवा वैक्रियिक तेजस और कार्मण भी होते हैं और यदि चार हों तो औदारिक आहारक तैजस और कार्मण होते हैं।
तद्रहणं प्रकृतशरीरद्वयप्रतिनिर्देशार्थ ॥१॥ तेजस और कार्मण इन दो शरीरोंका यहां प्रकरण चल रहा है इसलिये सूत्रमें जो तत् शब्द है ॐ उससे उन दोनोंका ग्रहण है। '
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