Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
निरुपभोगपना सिद्ध न हो सका तब कार्मण शरीरसे भिन्न सब शरीर सोपभोग हैं इस विवक्षित वात , की स्पष्टरूपसे सिद्धि हो गई। । जन्मोंके लक्षण और भेद ऊपर कह दिये गए हैं उनमें होनेवाले जो औदारिक आदि शरीर बत| लाए हैं वहांपर यह शंका होती है कि इन पांचों शरीरोंकी उत्पचि समानरूपसे है कि कुछ विशेषता है ? ६ विशेषता है ऐसा हृदयंगम कर सूत्रकार सबोंकी विशेषता बतलाते हुए पहिले औदारिक शरीरकी से विशेषता बतलाते हैं
गर्भसंमूर्छनजमाद्यं ॥४५॥ जिसकी उत्पचि गर्भ और संमूर्छनजन्मसे है वह औदारिक शरीर है।
जो आदिमें हो वह आद्य कहा जाता है, औदारिक वैक्रियिकेत्यादि सूत्रकी अपेक्षा आद्य शब्दसे यहां औदारिक शरीरका ग्रहण है ॥४५॥
औदारिक शरीरके बाद सूत्रमें वैक्रियिक शरीरका उल्लेख किया गया है इसलिये वहांपर भी यह शंका होती है कि उसकी उत्पचि किस जन्ममें मानी है ? सूत्रकार उसका समाधान देते हैं
औपपादिकं वैक्रियिकं ॥४६॥ जिसकी उत्पचि उपपाद जन्ममें है वह वैक्रियिक शरीर कहा जाता है। १-कर्मादानसुखानुभवनहेतृत्वात्सोपभोग कार्मणमिति चेन्न विवक्षितापरिज्ञानात् । इंद्रियनिमित्ताहि शब्दाद्युपलब्धिरूपभोग. तस्मानिष्क्रांतं निरुपभोगमिति विवक्षितं । तैजसमप्येवं निरुपभोगमस्त्विति चेन्न तस्य योगनिमित्तत्वाभावादनधिकारात् । यदेव हि योगनिमित्तमौदारिकादि तदेव सोपभोग प्रोच्यते निरुपभोगत्वादेव च कार्मणमौदारिकादिभ्यो मिन्नं निश्चीयते । श्लोकवार्तिक पृष्ठ ३४१।
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