Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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RUPISRURES
१ वैक्रियिक शरीरसे औदारिक शरीर असंख्यात गुणे हैं यहां पर गुणकार असंख्यात लोक प्रमाण माना। ६ गया है । औदारिक शरीरसे तैजस और कार्मण अनंतगुणे माने गये हैं। यहां पर सिद्धोंका अनंतगुणा गुणकार है इसप्रकार यह अल्पबहुत्वकी अपेक्षा औदारिक आदि शरीरोंमें आपसमें भेद है ॥४९॥
आत्माके आश्रित कार्मण शरीरके निमिचसे होनेवाले शरीरोंके धारक एवं इंद्रियोंके संबंधसे हूँ र अनेक भेदवाले देव नारकी आदि चारों प्रकारके संसारी जीवोंमें प्रत्येक जीवके क्या तीनों तीनों लिंग होते हैं कि कुछ लिंगोंका नियम है । इस शंकाका समाधान सूत्रकार देते हैं
नारकसंमूछिनो नपुंसकानि॥५०॥ नारकी और समूर्छन जीव नपुंसक होते हैं उनमें कोई भी जीव स्त्रीलिंग और पुलिंग नहीं होता।
धर्मार्थकाममोक्षकार्यनरणान्नराः॥१॥ धर्म अर्थ काम और मोक्ष ये चार पुरुषार्थ हैं इन चारो प्रकारके पुरुषार्थों को जो करनेवाले हों वे नर कहे जाते हैं।
नरान् कायंतीति नरकाणि ॥२॥ नृणंतीति वा ॥३॥ नरकेषु भवा नारकाः॥४॥ असात वेदनीय कर्मसे होनेवाली शीत उष्णरूप वेदनासे जो जीवोंको रुला दुखावें वे नरक हैं। अथवा
अहोरात्र पापसंचय करनेवाले प्राणियोंको जो अत्यंत दुःख दें-क्षणभर भी सुखके कारण न हों वे नरक हैं। उन नरकोंमें जाकर जो जीव उत्पन्न हों वे नारकी कहे जाते हैं।
१-यहां पर प्रदेशोंको अपेक्षा अल्पबहुत्व नहीं किंतु संख्याकी अपेक्षा अल्पवदुत्व लिया गया है।