Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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संख्यासि भद-आदारिक... -.. -
प्रमाण है और वह असंख्यात श्रेणी लोकप्रतरका असंख्यातवां भाग है। आहारक संख्याते हैं और यहां | संख्यात चौवन अक्षर प्रमाण लिया गया है। तेजस एवं कार्मण अनंतप्रमाण है और अनंतसे यहांपर ||६|| || अनंतानंतलोक लिया गया है । इसप्रकार यह संख्याके भेदोंकी अपेक्षा औदारिक आदिका आपसमें ||
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अध्याय
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प्रदेशोंसे भेद-औदारिक शरीरके अनंतप्रदेश हैं और वह अनंत यहां अभव्योंका अनंतगुणा | और सिद्धोंका अनंतवां भाग लिया गया है। अनंतके अनंत ही भेद माने हैं इसलिये वाकोके चारो शरीरोंमें उत्तरोचर अधिक अधिक प्रदेश समझ लेने चाहिये । शरीरोंमें किस किस प्रकार प्रदेशोंकी अधिकता है यह बात ऊपर विस्तारके साथ कह दी गयी है। अर्थात्-औदारिक शरीरमें जितने प्रदेश हैं उनसे असंख्यात गुणे वैक्रियिक शरीरमें हैं। वैक्रियिक शरीरसे असंख्यातगुणे आहारक शरीरमें हैं। | आहारक शरीरसे अनंतगुणे तैजस शरीरमें हैं और तैजस शरीरसे अनंतगुणे कार्मण शरीरमें हैं।
इसप्रकार यह प्रदेशोंके भेदसे औदारिक आदि शरीरोंका भेद है। . ' ___ भावसे भेद-औदारिक शरीर नाम कर्मके उदयसे औदारिक भाव हैं । वैक्रियिक शरीर नाम या कर्मके उदयसे वैक्रियिक भाव है। आहारक शरीर नाम कर्मके उदयसे आहारक भाव हैं। तैजस शरीर नाम कर्मके उदयसे तेजप्त भाव है और कार्मण शरीर नाम कर्मके उदयसे कार्मण भाव हैं। इसप्रकार औदारिक आदि शरीरोंके भावोंके भेदसे आपसमें औदारिक आदि शरीरोंका भेद है। -
अल्पबहुत्वसे भेद-सबसे थोडे आहारक शरीर हैं। उनसे असंख्येयगुणे वैक्रियिक शरीर हैं यहां ||७५७ है पर गुणकार असंख्यात श्रेणि ली गई हैं और वे लोकप्रतरके असंख्यातवें भाग प्रमाण मानी गई हैं।
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