Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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शरीर नाम कर्म कारण है, तेजस शरीरकी उत्पचिमें तैजस नाम कर्म कारण है और कार्मण शरीरकी उत्पत्तिमें कार्मणशरीर नाम कर्म कारण है इसप्रकार कारणके भेदसे औदारिक आदि शरीरोंमें भेद है। अध्या
स्वामिभेद-आहारक शरीर तिर्यच और मनुष्योंके होता है । वैक्रियिक शरीर देव नारकी तेज| कायिकजीव वातकायिकजीव तथा पंचेंद्रिय तिर्यच और मनुष्योंके होता है। यदि यहांपर यह शंका है
की जाय कि| जीव स्थानमें योगोंके भंग वर्णन करते समय सातप्रकारके काययोगोंकी प्ररूपणामें औदारिक काय है योग और औदारिक मि काय योग तिर्यच और मनुष्योंके कहा गया है और वैक्रियिक काययोग
और वैक्रियिक मिश्रकाययोग देव और नारकियोंके कहा गया है परंतु यहांपर वैक्रियिककाययोग और ४ विक्रियिक मिश्रकाययोगोंको तियंच और मनुष्योंके भी बतलाया है इसलिये यह कथन आगमका विरोधी है ? सो ठीक नहीं। अन्य ग्रंथों में भी तिथंच और मनुष्योंके भी वैक्रियिककाय योग और वैकि.
यिक मिश्रकाययोगका उल्लेख किया गया है इसलिये कोई दोष नहीं है । यदि कदाचित् फिर यह शंका Fउठाई जाय कि__व्याख्याप्रज्ञाप्तिके दंडकोंमें शरीरोंके भंगोंके वर्णन करते समय वायुकायिक जीवोंके सामान्यरूपसे
औदारिक वैक्रियिक तैजस और कार्मण ये चार शरीर कहे गये हैं। मनुष्योंके भी ये ही चार शरीर * | कहे गये हैं। परंतु सूत्रमें वैक्रियिक शरीरको औपपादिक और लब्धिप्रत्यय माना है इसरूपसे सामान्यतासे वह सब मनुष्योंके नहीं हो सकता तथा वायुकायिक जीवोंके भी वैक्रियिक शरीर सामान्यरीति | से नहीं कहा गया है इसलिये यहांपर आगमके विरुद्ध कथन है ? सो भी ठीक नहीं। समस्त देव और '
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