Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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माना जाता है और जिस समय अमुक बीजसे अमुक वृक्ष, अमुक वृक्षसे अमुक बीज इसप्रकार विशेष रूपसे कार्य कारणकी विवक्षा मानी जाती है उस समय बीज और वृक्षका वह संबंध सादि माना जाता 5 अध्याय है उसीप्रकार जिस समय आत्माके साथ तैजस कार्मण शरीरोंके निमिच नैमित्तिक संबंधकी सामान्य
रूपसे विवक्षा की जाती है उस समय आत्मा और तैजस कार्मणका अनादि सम्बन्ध है क्योंकि अनादि हूँ। हूँ कालसे ऐसा कोई भी समय नहीं वीता जिसमें तैजस कार्मणकी आत्मासे जुदाई हुई हो, और जिस है है समय अमुक तैजस कार्मणका अमुक अवस्थापन आत्माके साथ संबंध है इसप्रकार विशेष विवक्षा है है है उस समय उनका आपसमें निमित्त नैमिचिक संबंध सादि है । इसप्रकार सामान्य और विशेषकी अपेक्षा आत्मा और तेजस कार्मणका अनादि सादि दोनों प्रकारका संबंध युक्तिसिद्ध है।
एकांतेनादिमत्वेऽभिनवशरीरसंबंधाभावो निनिमित्तत्वात् ॥ ३॥ मुक्तात्माभावप्रसंगश्च ॥४
जो कोई एकांतसे तैजस और कार्मणका सादि संबंध स्वीकार करता है उसके मतानुसार जिस कालमें आत्माके साथ तैजस और कार्मणका संबंध नहीं है उसकालमें आत्माको शुद्ध मानना पडेगा शुद्ध आत्मा कभी तैजस कामण शरीरका कारण नहीं बन सकता इसलिये कारणके अभावसे फिर तेजस कार्मण शरीरका संबंध नहीं हो सकता इसरीतिसे तैजस कार्मण शरीरोंका सादि संबंध नहीं बन सकता। और भी यह बात है कि
यदि जबरन आत्माके साथ तैजस कार्मणका सादि संबंध माना जायगा तो वह बिना कारणके अकस्मात् होगा फिर जो मुक्तात्मा है उसके भी वह आकस्मिक संबंध मानना पडेगा इसरीतिसे शरीर का संबंध होनेसे मुक्तात्माओंका ही अभाव होगा। तथा
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