Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
परं परं सूक्ष्मं॥३७॥ औदारिकसे आगे आगेके शरीर सूक्ष्म हैं अर्थात् औदारिकसे वैक्रियिक, वैक्रियिकसे आहारक, है| आहारकसे तेजस, और तेजससे कार्मण शरीर सूक्ष्म है।
परशब्दस्यानेकार्थत्वे विवक्षातो व्यवस्थार्थगतिः॥१॥ पर शन्दके अनेक अर्थ हैं 'पूर्वः परम् पहिलेका और पश्चात्का, यहांपर परशब्दका अर्थ व्यवस्था । है। परपुत्रः, परभाति (अन्य पुत्रोऽन्यभार्योति ) यह पुत्र दूसरा है और यह सी दूसरी है, यहांपर है। परशन्द अन्य अर्थका वाचक है । परमियं कन्या, अस्मिन कुटुंबे प्रभानमिति, यह कन्या इस कुटुंबमें , प्रधान है यहांपर पर शब्दका अर्थ प्रधान है। परं धाम गतः (इष्टं भाम गतः) वह अपने इष्ट स्थानको चला गया यहांपर पर शब्दका अर्थ 'इष्ट' है परन्तु यहांपर पर शब्दका अर्थ व्यवस्था इष्ट है अर्थात् पश्चात् पश्चात के सूक्ष्म है।
पृथग्भूतानां शरीराणां सूक्ष्मगुणेन वीप्सानिर्देशः ॥२॥ नाम स्वरूप प्रयोजन आदिके भेदसे भिन्न जो औदारिक आदि शरीर हैं उनका यहां सूक्ष्मगुणके में साथ परंपरं'यह चीप्साका निर्देश है । अर्थात् आगे आगेके शरीर सूक्ष्म हैं यह यहांपर वीसा निर्देशका तात्पर्य है ॥ ३७॥
PRESCRIGINATICISMEGISTRI
१। 'सकसपर्मप्रत्यायनेच्छा वीप्सा' जितने पदार्थों को सक्ष्यकर बात कही जाय उन समस्त पदार्थोंका ज्ञान करा देनेकी इच्छा बीमा है। मापकौड़ती।
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