Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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HABAR
ॐ शब्दका उल्लेख किया है। यदि यहाँपर यह शंका की जाय कि-वैक्रियिक शरीरकी अपेक्षा गर्भज
शरीर भी अत्यन्त स्थूल है इसलिये संमूर्छन और गर्भ दोनों शब्दोंमें किसका पूर्वनिपात न्याय प्राप्त होगा । इसका समाधान वार्तिककार देते हैं
___ अल्पकालजीवित्वात्संमूर्छन ॥६॥तत्कार्यकारणप्रत्यक्षत्वात् ॥ ७ ॥ गर्भज और औपपादिक जीवोंकी अपेक्षा संमूर्छनज जीव थोडे काल जीनेवाले हैं इस अपेक्षासे , , संमूर्छन शब्दका पूर्वनिपात किया गया है और भी यह वात है कि
गर्भ और उपपाद जन्मोंका कार्य कारण भाव प्रत्यक्ष नहीं है किंतु अनुमानगम्य है परन्तु सैमूर्छन जन्मका कारण मांस आदि और कार्य संमूर्छनज शरीर इस जन्ममें और परजन्ममें दोनों जगह प्रत्यक्ष है इस अपेक्षा भी गर्भ और उपपादसे संमूर्छनका उल्लेख पहिले किया गया है।
तदनंतरं गर्भगृहण कालप्रकर्षनिष्पत्तेः॥८॥ संमूर्छन जन्मकी अपेक्षा गर्भजन्मकी उत्पत्रिम अधिक कालकी आवश्यकता पडती है इसलिये ॐ संमूर्छन जन्मके अनंतर न्यायप्राप्त गर्भजन्मका उल्लेख किया गया है।
उपपादगृहणमंते दीर्घजीवित्वात् ॥ ९॥ ___ संमूर्छनज और गर्भज जीवोंकी अपेक्षा औपपादिक जीवोंका जीवन दीर्घकालीन है इसलिए सबके अंतमें उपपाद जन्मका उल्लेख किया गया है । जन्मोंका भेद कैसे हो जाता है? वार्तिककार इस विषयको स्पष्ट करते हैं
DISGRE-10+BREGIONEERAS
BRECSIR-CHASEASESSISIS