Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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एक प्रदेशसे दूसरे प्रदेशमें जाना क्रिया है । यह क्रिया जीव और पुद्गलमें बन सकती है क्योंकि है 1समस्त द्रव्योंमें जीव और पुद्गलको ही जैनसिद्धांतमें क्रियावान माना गया है । इसलिये उन दोनोंमें ।
५ तो क्रियाका कर्तृत्व रह सकता है धर्म अधर्म आदिमें कोई क्रिया हो नहीं सकती इसलिये उनमें क्रियाका १६०% कर्तृत्व सिद्ध नहीं हो सकता इसरीतिसे कर्तृत्व धर्म सब द्रव्योंमें रहनेवाला साधारण नहीं कहा जा
* सकता ? सो ठीक नहीं। धर्म आदि द्रव्योंमें गमन क्रिया विषयक कर्तृत्व न भी हो तथापि अस्ति आदि हूँ विशेष क्रियाविषयक कर्तृत्व है ही इसरीतिसे सामान्यरूप अपनी अपनी योग्य क्रियाओंका कर्तृत्व जब सब हूँ
द्रव्यों में है तब कर्तृत्व धर्म साधारण है और अपनी उत्पत्तिमें कोंके उदय आदिकी अपेक्षा नहीं रखता है इसलिये वह पारिणामिक भाव है । पुनः शंका
आत्माके प्रदेशोंका हलन चलन होना योग कहा गया है । उसका कर्तृत्व साधारण धर्म नहीं है क्योंकि सिवाय आत्माके वह किसी भी अन्य द्रव्यमें नहीं रहता तथा अपनी उत्पत्ति कर्मोंके उदय , आदिकी अपेक्षा न करनेके कारण वह पारिणामिक भाव है इसलिये असाधारण और पारिणामिक होनेसे जीवत्व आदिके साथ उसका सूत्रमें उल्लेख करना चाहिये ? सो ठीक नहीं यह ऊपर कहा जात है चुका है कि जिसकी उत्पत्तिमें कमौके उदय आदिकी अपेक्षा नहीं वह पारिणामिक भाव है । योगोंके कर्तृत्वमें क्षयोपशमकी अपेक्षा है इसलिये असाधारण होने पर भी योगोंका कर्तृत्व क्षायोपशमिक ही
१वीर्यातरायक्षयोपशमसद्भावे सति औदारिकादिसप्तविधकायवर्गणान्पतमालंचनापेक्षया श्रात्मपदेशपरिस्पदःकाययोगः । शरीर नामकर्मोदयापादित वाग्वर्गणालबने सति वीर्यातरायमत्यक्षराद्यावरण क्षयोपशमापाविताभ्यंतरवाग्लब्धिसांनिध्ये वाक्परिणामाभिमुखश्यात्मनामदेशपरिस्पदो वाग्योगः । अभ्यंतरवीर्यातरायनोइंद्रियावरणक्षयोपशमात्मकमनोलब्धिसन्निधाने वाद्यनिमित्तमनोवर्गणालंबने च सति मनःपरिणाभिमुखस्यात्मनः प्रदेशपरिस्पंदो मनोयोगः ।
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