Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्वाव
खरा० भाषा
___ उपयोगको ज्ञानदर्शन स्वरूप माना है। वह इंद्रियोंका फल है क्योंकि उसकी उत्पचि इंद्रियोंसे होती है किंतु इंद्रियस्वरूप नहीं परंतु यहांपर उपयोगको भावेंद्रिय माना है इसलिए यह अयुक्त है। सो
ठीक नहीं। कार्य भी लोकमें कारण माना गया है जिसतरह घटाकार परिणतज्ञान घटसे जायमान MP होनेसे घटका कार्य है तथापि उस विज्ञानको घट कह दिया जाता है उसीप्रकार उपयोग यद्यपि इंद्रियों | से जायमान होनेसे उनका फल है तथापि वह इंद्रिय, कहा जा सकता है इसलिए उपयोगको भावेंद्रिय माननेमें कोई आपत्ति नहीं । तथा
शब्दार्थसंभवाच्च ॥४॥ ऊपर 'इंद्रियस्य लिंग वा इंद्रेण सृष्टं' अर्थात् जो आत्माका लिंग हो और कर्मद्वारा रचा गया हो || वह इंद्रिय है, यह जो इंद्रिय शब्दका अर्थ कह आए हैं वह प्रधानतासे उपयोगके अंदर ही घटता है
| क्योंकि ज्ञान दर्शनस्वरूप उपयोग आत्माका लिंग भी है और कर्मसे रचित भी है। इसलिए उपयोगको हा भावेंद्रिय मानना अयुक्त नहीं ॥१८॥
'इंद्रियां पांच हैं' यह ऊपर संख्यामात्र इंद्रियोंकी बतलाई है परंतु उन पांचोंके नाम क्या क्या हैं ? और उनका आनुपूर्वीक्रम क्या है ? यह विशेष नहीं बतलाया सूत्रकार अब उसे बतलाते हैं
स्पर्शनरसनघ्राणचतुःश्रोत्राणि ॥१६॥ | अर्थ-स्पर्शन रसना प्राण चक्षु और श्रोत्र ये पांच इंद्रियां है । स्पर्शनका अर्थ त्वक् रसनाका. | जीभ, प्राणका नाक, चक्षुका नेत्र श्रोत्रका अर्थ कान है।
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