Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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कृमिपिपीलिकेत्यादि सूत्रमें स्पर्शन इंद्रियकी अनुवृत्ति आरही है इसलिये उसे लेकर एक एक इंद्रिय 18 अधिक है यह यहांपर विशेषता है । अर्थात् जिनके दो इंद्रियां हैं उनके स्पर्शन इंद्रिय रसना अधिक है % अध्याय ६ जिनके तीन इंद्रियां हैं उनके स्पर्शन और रसना घ्राण इंद्रिय अधिक है इत्यादि अर्थ है इसलिये उपयुक्त ई संदेह यहां नहीं हो सकता । एकैकवृद्ध इतने शब्दके कहनेसे स्पर्शनादि इंद्रियां एकैकवृद्ध हैं, यह अर्थ हूँ है कैसे होगा ? उसका समाधान
वाक्यांतरोपप्लवात् ॥ ४॥ जो वाक्य निबंधनस्थान अर्थात् निर्णीतप्रायः रहता है उसके साथ दूसरे शब्दका संयोग हो जाता है है जिसतरह 'अक्षः' यह निर्णीत वाक्य है उसके साथ भक्ष्यता, भज्यतां, दीव्यतां, इन दूसरे दूसरे शब्दोंका उपप्लव-संयोग, हो जाता है अर्थात् अक्षो भक्ष्यतां बहेडा खाओ। अक्षो भज्यतां गाढीका धुरा तोड दो। अक्षो दीव्यतां जूवा खेलो यह वहांपर अन्य वाक्योंके संयोगस अर्थसमन्वय कर लिया जाता है। उसीतरह एक एक वृद्ध है यह वाक्य निर्णीतप्रायः है। उस निर्णीतप्राय वाक्यसे लट आदिके हैं रसना अधिक स्पर्शन इंद्रिय है। चिउंटी आदिके प्राण अधिक स्पर्शन और रसना इंद्रियां हैं। भौरा है आदिके नेत्र अधिक स्पर्शन रसना और घ्राण इंद्रियां हैं मनुष्य आदिके श्रोत्र अधिक स्पर्शन रसना घाण और नेत्र इंद्रियां हैं इसप्रकार दूसरे दूसरे वाक्योंका संयोग कर लिया जाता है। इसरीतिसे स्पर्शन, रसना इंद्रिय अधिक है इत्यादि अर्थसमन्वय निर्दोष है।
आदिशब्दः प्रकारे व्यवस्थायां वा वेदितव्यः॥५॥ १ जिन शब्दोंका ज्ञान अनेकार्थक है उनका प्रकरणवश दूसरे शब्दोंका प्रयोग करनेसे उनका अर्थ स्वयं घठित हो जाता है।
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