Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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यदि संज्ञा शब्दका अर्थ रूढि 'नाम' माना जायगा तो वह सैनी असैनी समस्त प्राणियों में प्रतिनियत है। उससे असैनी जीवोंकी निवृत्ति नहीं हो सकती इसलिए असैनी जीवोंको भी संज्ञी कहना || पडेगा। 'संज्ञानं संज्ञा' भले प्रकार जानना संज्ञा है इस व्युत्पाञ्चके बलसे यदि उसका अर्थ ज्ञान माना जायगा तो वह ज्ञान भी सैनी असैनी सब प्रकारके जीवोंमें विद्यमान है इसलिए इस अर्थक माने जाने
पर भी केवल संज्ञी शब्दके उल्लेखसे असैनी जीवोंकी व्यावृचि नहीं हो सकती, उन्हें भी संज्ञी कहना 5 पडेगा इसलिए सैनी जीव ही संज्ञी कहे जांय इस निर्धारणकेलिए समनस्क पदका ग्रहण सार्थक है। ६ यदि कदाचित् यहांपर यह कहा जाय कि
आहारादिसंज्ञेति चेन्नानिष्टत्वात ॥५॥ ___संज्ञा शब्दके नाम वा ज्ञान अर्थ माननेपर संज्ञित्व लक्षण असैनी जीवों में भी घट जानेपर वे भी संज्ञी कहे जा सकते हैं परंतु हम तो आहार भय मैथुन और परिग्रह यह अर्थ संज्ञी शब्दका मानते हैं | वह असैनी जीवोंमें नहीं घट सकता इसलिए कोई दोष नहीं हो सकता ? सो ठीक नहीं। आहार भय। | मैथुन और परिग्रह संज्ञाएं भी समस्त संसारी जीवोंके विद्यमान हैं इसलिए संज्ञा शब्दका आहार आदि | अर्थ माननेपर भी असैनी जीवोंकी व्यावृत्ति नहीं हो सकती । असैनी जीवोंको संज्ञी मानना आगम| विरुद्ध होनेसे अनिष्ट है इसलिए इस अनिष्टताके परिहारकेलिए सूत्रमें समनस्क पदका उल्लेख | सार्थक है। । तथा समनस्क शब्दका उल्लेख न कर यदि सूत्रमें केवल संज्ञी शब्दका ही उल्लेख किया जायगा
और संज्ञी शब्दका अर्थ हित अहितकी परीक्षा करनेवाला माना जायगा तो जो जीव गर्भ वा अंडेके
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