Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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BSPEECREASOURSABAIKOPARomansar
ऐसा कोई उपपाद क्षेत्र नहीं जिसमें जाने के लिये चार या पांच मोडोंके लेनकी आवश्यकता पडे इस. लिये चार आदि मोडोंका अभाव है तथा जब अधिकसे अधिक तीन ही मोडा लिये जा सकते हैं तब 15
चार समयसे अधिक समयके मानने की भी कोई आवश्यकतानहीं। तीन मोडाओके लिये चारसमयसे | । पहिले पहिलेहीका काल पर्याप्त है। यदि यहांपर यह शंका की जाय कि___चौथे समयसे पहिले पहिलेका समय ही तीन मोडोंके लिये क्यों पर्याप्त माना गया अधिक काल क्यों नहीं लगता ? सो ठीक नहीं । जिसप्रकार साठी चावलोंके पकनेका काल परिमित है । उस परिमित कालसे कम वा अधिक कालमें उनका परिपाक नहीं माना गया उसीप्रकार विग्रहगतिमें अधिकसे
अधिक तीन मोडोंके लिये जो समय निर्दिष्ट किया है वही समय पर्याप्त है उससे अधिक वा कम समय | B की वहां आवश्यकता नहीं।
चशब्दः समुच्चयार्थः॥२॥ ___सूत्रमें जो चशब्द है वह उपपादक्षेत्रमें जानेके लिये संसारी जीवोंकी सीधी भी गति होती है। | और मोडेवाली कुटिल भी गति होती है इसप्रकार दोनोंतरहकी गतिओंके समुच्चयके लिये है।शंका
' आङ्ग्रहण लघ्वर्थमिति चेन्नाभिविधिप्रसंगात ॥३॥ 2. आङ् उपसर्गका अर्थ भी मर्यादा है। इसलिये प्राक्चतुर्व्यः' इसकी जगह 'आचतुभ्यः' यह | कहना चाहिये । आचतुर्व्यः' कहनेस भी चारसमयसे पहिले पहिले' यही अर्थ होगा। तथा एक अक्षर ५ का लाघव भी होगा जिस सूत्रकारके मतमें एक महान फल माना गया है ? सो ठीक. नहीं । आङ् 18 उपसर्गके ईषत् क्रियायोग मर्यादा और अभिविधि ये चार अर्थ माने हैं। यदि आङ्का आभिविधि-६
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