Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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मध्याप
AGARERAKASHASTRVASNA
वायुकायिक और वनस्पतिकायिक इन पांचो प्रकारके जीवोंके पहिली स्पर्शन इंद्रिय ही होती है अर्थात् ये पांच एकमात्र स्पर्शन इंद्रियके धारक स्थावर जीव हैं।
. अंतशब्दस्यानेकार्थत्वे विवक्षातोऽवसानगतिः॥१॥ ___ अंतशब्दके अनेक अर्थ माने हैं जिसप्रकार वस्रांतः वसनांतः अर्थात् वस्त्रका अवयव यहांपर अंत शब्दका अर्थ अवयव है । उदकांतं गतः-उदक समीपे गतः अर्थात् जलके समीप गया यहांपर अंतशब्द | का समीप अर्थ है । संसारांतं गतः संसारावसानं गतः अर्थात् संसारके अंतको प्राप्त हुआ यहांपर अंतशब्दका अवसान अर्थ है । सूत्रमें जो अंत शब्द है उसके अवसान अर्थकी यहां विवक्षा हैवनस्पत्वंतानां| वनस्पत्यवसानानां, अर्थात् जिनके अंतमें वनस्पति है ऐसे पृथिवीकायिक आदि जीवों के एक 8| | इंद्रिय है।
सामीप्यवचने हि वायुत्रससंप्रत्ययप्रसंगः ॥२॥ वा यदि वनस्पसंतानां' यहाँपर अंतशब्दका समीप अर्थ माना जायगा तो 'पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्प-है।
तयःस्थावराः' इस सूत्रमें या तो वनस्पतिशब्दके पास वायुशब्द पठित है इसलिए उसका ग्रहण होगाया उसके आगेके सूत्रमें पासही त्रसकायका उल्लेख है इसलिए उसका ग्रहण होगा। पृथिवी आदिका किसी प्रकारसे ग्रहण नहीं हो सकता इसलिए यहाँपर अंतशब्दका समीप अर्थ न ग्रहणकर अवसान ही अर्थ || ग्रहण करना चाहिए। उससे पृथिवीकायिकको आदि लेकर वनस्पति पर्यंत जीवोंमें स्पर्शन इंद्रियका. स्वामीपना निर्बाध है।
अंतशब्दस्य संबंधिशब्दत्वादादिसंप्रत्ययः॥३॥
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