Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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- AmARANANARRIALPHIRECRUARRESPREGRECE
स्पर्शन इंद्रियका ग्रहण है । तथा वनस्पत्यंतानामके' अर्थात् पृथिवीको लेकर वनस्पतिपर्यंत समस्त ? जीवोंके एक ही स्पर्शन इंद्रिय होती है, इससूत्रमें एक शब्दसे स्पर्शन इंद्रियका ही ग्रहण किया जाय है इसलिये पांचो इंद्रियों में स्पर्शन इंद्रियका सबसे पहिले ग्रहण किया गया है। तथा यह भी बात है कि
जितनेभर भी संसारमें जीव हैं सबके स्पर्शन इंद्रिय विद्यमान है इसलिये समस्त संसारी जीवों में में विद्यमान रहनेसे नाना जीवोंकी अपेक्षा व्यापी रहने के कारण सूत्रमें स्पर्शन इंद्रियका पहिले उल्लेख किया गया है।
ततो रसनघ्राणचक्षुषां क्रमवचनसुत्तरोत्तराल्पत्वात् ॥ ५॥ श्रोत्रस्यांते वचनं बहूपकारित्वात् ॥६॥
स्पर्शन इंद्रियके वाद रसना प्राण और चक्षुका जो कथन किया गया है उसमें उत्तरोचर अल्पता है कारण है और वह इसप्रकार है
___ सबसे थोडे चक्षु इंद्रियके प्रदेश हैं। उससे संख्यात गुणे श्रोत्र इंद्रियके प्रदेश हैं। उससे कुछ विशेष 0 अधिक घ्राणेंद्रियके हैं । उससे असंख्यातगुणे रसना इंद्रियके हैं और उससे अनंतगुणे स्पर्शन इंद्रियके
हैं। इसरीतिसे रसना इंद्रियके प्रदेशोंकी अपेक्षा प्राण इंद्रियके और प्राण इंद्रियके प्रदेशोंकी अपेक्षा हूँ ६ चक्षु इंद्रियके प्रदेश कम होनेसे रसनाके वाद घाणका और घाणके वाद चक्षुका सूत्रमें उल्लेख किया है हूँ • गया है। यदि यहां पर यह शंका की जाय कि
जब सब इंद्रियोंकी अपेक्षा चक्षु इंद्रियके प्रदेश कम है तब सब इंद्रियोंके अंतमें चक्षु इंद्रियका ही पाठ रखना ठीक हैं ? श्रोत्रका सबके अंतमें पाठ क्यों रक्खा गया ? सो ठीक नहीं। ओत्र इंद्रियके बलसे ६५० 2. उपदेशको सुनकर मनुष्य हितकी प्राप्ति और अहितके परिहार में प्रवृत्त होते हैं इसलिये समस्त इंद्रियोंकी
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