Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अम्बार
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६ रूपसे मानी गई है इसलिये इंद्रियां आपसमें अथवा इंद्रियवान्से कांचित् अभिन्न भी हैं और कथंचित् । | भिन्न भी हैं और वह इसप्रकार हैं___ज्ञानावरणकर्मकी क्षयोपशमरूप शक्ति पांचो इंद्रियोंकी उत्पचिमें समानतासे कारण है इसलिये है |जिससमय उस शक्तिके अभेदकी विवक्षा की जायगी उससमय शक्तिके एक होनेसे स्पर्शन आदि पांचोई | इंद्रियां एक हैं और वह ज्ञानावरणकर्मकी क्षयोपशमरूपशक्ति प्रतिनियत भिन्न भिन्न स्वरूप मानी |
जायगी अर्थात् स्पर्शन इंद्रियकी उत्पत्तिमें स्पर्शनेंद्रियावरणकर्मको क्षयोपशपरूप शक्ति कारण है | || रसना इंद्रियकी उत्पत्तिमें रसनेंद्रियावरणकर्मकी क्षयोपशमशक्ति कारण है इत्यादिरूपसे प्रत्येक इंद्रियः | | की उत्पचि क्षयोपशम रूप शक्तिको भिन्न भिन्नरूपसे स्वीकार किया जायगा उससमय शक्तिके भेदसे | स्पर्शन आदि इंद्रियां भी भिन्न भिन्न हैं। अथवा
समुदायी-अवयव, समुदायसे भिन्न नहीं कितु समुदाय स्वरूप ही माने जाते हैं और वह समुदाय एक || पदार्थ माना गया है इसलिये स्पर्शन आदि समस्त इंद्रियांरूप अवयव, समुदायस्वरूप शरीर पदार्थसे | || भिन्न नहीं इसरीतिसे अवयवोंकी अभेद विवक्षा माननेपर द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा स्पर्शन आदि |
इंद्रियां एक हैं और जब स्पर्शन इंद्रियके अवयव भिन्न हैं। रसनाके भिन्न हैं इसप्रकार अवयवोंकी भेद | || विवक्षा है उससमय पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा स्पर्शन आदि इंद्रियां भिन्न भिन्न हैं। अथवा
इंद्रियजन्य ज्ञान उनका नाम तथा प्रवृत्ति निवृत्तिकी जहांपर अभेदरूपसे विवक्षा है अर्थात ज्ञान || आदिको जुदा जुदा नहीं माना जाता वहांपर स्पर्शन आदि पांचो इंद्रियां एक हैं और जहाँपर स्पर्शन |६६१ | इंद्रिय जन्य ज्ञान अथवा उनके नाम उनका ज्ञान और प्रवृत्ति निवृत्तिका भेद है उनसे जायमान-ज्ञान
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