Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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जिसके द्वारा वर्णन किया जाय वह वर्ण और जिसके द्वारा सुना जाय वह शब्द है । इसप्रकार स्पर्श है| आदिकी कर्म-साधन व्युत्पचि है । तथा
जिससमय प्रधानरूपसे पर्यायकी विवक्षा है उससमय द्रव्य और पर्यायोंका आपसमें भेद रहनेसे हूँ। जो उदासीन रूपसे मौजूद भाव है उसीका कथन किया जाता है इसलिए पर्यायोंकी प्रधानरूपसे विवक्षा है ४ा रहनेपर जो स्पर्श स्वरूप हो वह स्पर्श, जो रसस्वरूप हो वह रस, जो गंधस्वरूप हो वह गंध, जो वर्ण६ स्वरूप हो वह वर्ण और जो शब्दस्वरूप हो वह शब्द इसप्रकार स्पर्श आदिकी भावसाधन व्युत्पत्ति है। || इसरीतिसे द्रव्य और पर्यायोंकी विवक्षामें स्पर्श आदिकी कर्म और भावसाधन दोनों प्रकारको व्युत्पत्ति है| अविरुद्ध है । शंका8 परमाणु अत्यंत सूक्ष्म अतींद्रिय पदार्थ है । जिसका स्पर्श किया जाय वह स्पर्श जो चखा जाय । | वह रस, यदि इसप्रकार स्पर्श आदिको व्युत्पचि मानी जायगी तो परमाणुके अंदर रहनेवाले स्पर्श
आदिमें तो यह ब्युत्पत्ति घट नहीं सकती इसलिए वहांपर स्पर्श आदि व्यवहार न हो सकेगा? सो ठीक नहीं। जो गुण कारणमें होता है वह कार्यमें भी नियमसे रहता है। स्थूल स्कंध आदि परमाणुके कार्य हैं और परमाणु उनके उत्पादक कारण हैं। स्कंध आदिमें स्पर्श आदि साक्षात् अनुभवमें आते हैं वे परमाणुओंमें स्पर्श आदिके माने बिना नहीं हो सकते इसलिए स्कंध आदिमें स्पर्श आदिके साक्षात्कारसे | परमाणुओंमें भी अनुमानद्वारा उनकी सचा सिद्ध होनेसे परमाणुओंमें स्पर्श आदिकाव्यवहार अबाधित १६१ है यहांपर यह न कहना चाहिए कि स्थूल स्कंधोंमें जो स्पर्श आदि हैं उनकी उत्पचि परमाणुगत स्पर्श
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