Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
HO-ASSOSISROKAR
। भेद न स्वीकार किया जायगा; तो जिससमय ठंडे गरम आदि स्पर्शका ज्ञान हो रहा है उससमय खट्टे ; मीठे आदि रसका और गंध आदिका भी ज्ञान होना चाहिये क्योंकि स्पर्श आदि सब एक हैं स्पर्शादिको
यदि स्पर्शादिमानसे अभिन्न माना जायगा तो स्पर्शादि ही रहेंगे या स्पर्शादिमान ही रहेंगे यदि स्पर्शादि
मान् वस्तु ही मानी जायगी तो स्पर्शादि लक्षणोंके अभाव हो जानेसे लक्ष्य वस्तु भी नहीं सिद्ध होगी। । यदि स्पर्शादिहीमाने जायगे तो विना स्पर्शादिमान् पदार्थोंके निराधार स्पर्शादि कहां ठहरेंगे इसलिए हूँ हैं उनका अभाव हो जायगा। यदि स्पर्श आदिको आपसमें सर्वथा भिन्न माना जायगा तो जिसतरह से * रूप गुणसे घटका आकार भिन्न है। इसलिए जिससमय रूपका ज्ञान होता है उससमय घटके आकार
को ज्ञान नहीं होता उसीप्रकार जिससमय स्पर्शका ज्ञान होगा उससमय रूप आदिका ग्रहण होगा ही।
नहीं तब स्पर्श रस आदि अनेक गुणस्वरूप घट न होने के कारण 'अयं घटः स्पृष्टः' मैंने इस घटका र स्पर्श किया, यह व्यवहार न होगा इसलिए स्पर्श आदि गुणोंका सर्वथा भेद वाअभेदयुक्तिसिद्ध नहीं।
तथा स्पर्शवान आदि पदार्थोंसे यदि स्पर्श आदि गुणोंको सर्वथा अभिन्न माना जायगा तो वह हूँ अभेदस्वरूप स्पर्शादिमान पदार्थ कहा जायगा वा स्पर्श आदि गुण कहे जायगे । यदि स्पर्शादिमान् है है पदार्थ कहा जायगा तो यह नियम है कि लक्षणके अभावमें लक्ष्यका भी अभाव माना जाता है। स्पर्शादिमान पदार्थके स्पर्श आदि लक्षण हैं यदि उन्हें न माना जायगा तो स्पर्शादिमान पदार्थ भी सिद्ध न* हो सकेगा। यदि वह अभेद स्पर्श रस आदि गुणस्वरूप ही माना जायगा, स्पर्शादिमान पदार्थस्वरूप
न माना जायगा तो स्पर्श आदि गुण; विना किसी आधारके रह नहीं सकते इसलिए निराधार होनेसे ५ स्पर्श आदिका अभाव ही हो जायगा इसरीतिसे स्पर्शादिमानपदार्थ और स्पर्श आदि गुणोंका आपसमें
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