Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
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दो औपशमिक भावोंका आपसमें संयोग रहनेपर तथा औपशमिक भावका औदयिक आदि है चारोंमेंसे एक एकके साथ संबंध रहनेपर भी पांच भंग होते हैं। उनमें औपशमिकोपशमिकसान्निपा- तिकजीवभाव नामका पहिला भंग है जिसतरह उपशमसम्यग्दृष्टि उपशांतकषाय । औपशमिकोदयिकसानिपातिकजीवभाव नामका दूसरा भंग है जिसतरह उपशांतकषायी मनुष्य । औपशमिक-३
शायिकसान्निपातिकजीवभाव नामका तीसरा भंग है जिसप्रकार उपशांत क्रोधवाला क्षायिकसम्यहूँ ग्दृष्टि । औपशमिक क्षायोपशमिक सान्निपातिक जीवभाव नामका चौथा भंग है जिसतरह उपशांत है कषायवाला अवधिज्ञानी । और औपशमिकपारिणामिकसान्निपातिकजीवभाव नामका पांचवां भंग है है जिसतरह उपशांत दर्शनमोहवाला जीव ।
दो क्षायिक भावोंका आपसमें संयोग रहनेपर तथा क्षायिक भावका औदयिक आदि चारों भावों में एक एकके साथ संबंध रहनेपर भी पांच भंग होते हैं। उनमें क्षायिकक्षायिकसान्निपातिकजीवभाव नामका पहिला भंग है जिसतरह क्षायिकसम्यदृष्टि क्षीणकषायवाला । क्षायिकौदयिकसान्निपातिक जीवभाव नामका दसरा भंग है जिसतरह क्षीणकषायवाला मनुष्य । क्षायिकौपशमिकसान्निपातिक जीवभाव नामका तीसरा भंग है जिसतरह क्षायिकसम्यग्दृष्टि उपशांतवेदवाला। क्षायिकक्षायोपशमिक
सान्निपातिकजीवभाव नामका चौथा भंग है जिसतरह क्षीणकषायवाला मतिज्ञानी। और क्षायिकहै पारिणामिकसान्निपातिकजीवभाव नामका पांचवां भंग है जिसप्रकार क्षीणमोहवाला भव्य।
दोक्षायोपशमिक भावोंका आपसमें संयोग रहनेपर तथा क्षायोपशमिक भावके साथ औदायिक ॐ आदि चारों भावोंमेंसे एक एकके रहने पर भी पांच भंग होते हैं। उनमें क्षायोपशमिकक्षायोपशमिकजीव
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