Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
अध्याय
NACHADHURRECORDPREGS
मिक एवं पारिणामिक भावोंमें एक एकका ग्रहण हो वह दूसरा त्रिभावसंयोगी भेद है और उसके दो भंग माने हैं । उनमें औदयिकक्षायिकक्षायोपशमिकसान्निपातिकजीवभावनामका पहिला भंग है है जिसतरह क्षीणकषायी मनुष्य श्रुतज्ञानी है । और औदयिकक्षायिकपारिणामिकसान्निपातिकजीव भाव नामका दूसरा भंग है जिसप्रकार जिसका दर्शनमोहकर्म क्षीण हो गया है वह मनुष्य जीव । ___जहां पर केवल औदयिक भावका ग्रहण है और औपशमिक एवं क्षायिकका परित्याग है वह तीसरा त्रिभाव संयोगी भेद है और उसका औदयिकक्षायोपशमिकपारिणामिकसान्निपातिकजीव भाव नामका एक भंग है जिसतरह मनोयोगी मनुष्य जीव ।
जहांपर औदयिक भावको छोडकर शेष औपशमिकादि चार भावोंमें एक एकका परित्यागरहे वह चौथा त्रिभाव संयोगी भेद है और उसके चार भंग माने हैं । उनमें औपशमिकक्षायिकक्षायोपशमिक| सानिपातिक जीव भाव नामका पहिला भंग है जिसतरह जिसका मानकषाय उपशांत हो गया है और
दर्शन मोडक्षीण हो गया है ऐसा काय योगी । औपशमिकक्षायिकपारिणामिकसान्निपातिकजीव | भाव नामक दूसरा भंग है जिसतरह जिसका भेद उपशांत है वह क्षायिकसम्यग्दृष्टि भव्य । औपशमिक
क्षायोपशमिकपारिणामिकसानिपातिक जीव भाव नामका तीसरा भंग है जिसतरह उपाशांत मानवाला मतिज्ञानी जीव । और क्षायिकक्षायोपशमिकपारिणामिकसान्निपातिक जीव भाव नामका चौथा भंग है जिसतरह क्षीण मोह पंचेद्रियभव्य । इसप्रकार ये त्रिभाव संयोगी भंग भी मिलकर दश हैं। जहांपर औदयिक आदि पांचोमें एक एकका परित्याग रहे वह चतुर्भाव संयोगी भेद है और उसके पांच भंग है। उनमें औपशमिकक्षायिकक्षायोपशामिकपारिणामिकसान्निपातिक जीव भाव नामका
PREALIGERISPERISPEPISORINE
५७६