Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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नास्तित और अप्रत्यक्षत्व बताया गया है वह कथंचित् रूपसे ही है सर्वथारूपसे नहीं इसलिये है कथंचित रूपसे आत्माका आस्तित्व और प्रत्यक्षत्व सिद्ध होनेसे उपर्युक्त अनुमान अनुमानाभास ही है। तथा--
जिसतरह अस्तित्व और प्रत्यक्षत्वके विना वस्तु अवस्तु मानी जाती है उसीप्रकार नास्तित्व और | अप्रत्यक्षत्वके विना भी वह अवस्तु है। क्योंकि जिसप्रकार अस्तित्व और प्रत्यक्षत्व वस्तुके धर्म हैं उस | प्रकार नास्तित्व और अप्रत्यक्षत्व भी वस्तुके ही धर्म हैं इसलिये नास्तित्व और अप्रत्यक्षत इन दो धर्मों है | के विना माने भी धर्मी वस्तुकी सिद्धि नहीं हो सकती किंतु अस्तित्व और प्रत्यक्षत्वके समान प्रत्येक | वस्तुमें नास्तित्व और अप्रत्यक्षत्व धर्म भी मानने पड़ेंगे इसरीतिमे उपयुक्त अनुमानके पक्षस्वरूप आत्मा| में नास्तित्व और अप्रत्यक्षत्वके विना माने भी उसकी सिद्धि नहीं हो सकती इसलिये आत्माको कथं| चित् अस्तित्वस्वरूप कथंचित् नास्तित्वस्वरूप कथंचित् प्रत्यक्षत्वस्वरूप कथंचित् अप्रत्यक्षत्वस्वरूप ही | मानना ठीक है इसरीतिसे आत्माका सर्वथा नास्तिल और अप्रत्यक्षत्व नहीं वन सकनेसे उसकी सर्वथा नास्ति नहीं मानी जाती। इसीप्रकार एकांतवादियोंके अकारणत्व.और अप्रत्यक्षत्व के समान और भी अनेक हेतु आत्माकी अस्तित्व सिद्धि में मान रक्खे हैं उन्हें भी इन्हीं हेतुओंके समानं सदोषः समझ लेना हूँ चाहिये । क्योंकि आत्माका अभाव कोई भी हेतु सिद्ध नहीं कर सकता। आत्माके अस्तित्वकी सिद्धि इसप्रकार है- ....
ग्रहणविज्ञानासंभविफलदर्शनाद्गृहीतृसिद्धिः॥ १९॥ . . ., प्राण-इंद्रियां और ज्ञानमें नहीं होनेवाला फल (कार्य) दीख पडता है उस फलका कारण सिवाय
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