Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
मध्यान
[०रा० मापा
80555535ASSORBALSO
चतुरशब्दका ही पहिले प्रयोग करना ठीक है इसतिसे 'अष्टचतुर्भेदः' इसकी जगह पर 'चतुरष्टभेद:
ऐसा पाठ पढना चाहिए ? सो ठीक नहीं। जो पूज्य होता है उसका पहिले निपात होता है यह बात & ऊपर कह दी जा चुकी है । दर्शनकी अपेक्षा ज्ञान पूज्य है और सूत्रमें अष्टशब्दसे उसीका संबंध है इस
लिए कोई दोष नहीं। ___मतिज्ञान श्रुतज्ञान अवधिज्ञान मनःपर्ययज्ञान केवलज्ञान कुमतिज्ञान कुश्रुतज्ञान कुअवधिज्ञान ये
आठ भेद ज्ञानोपयोगके हैं। तथा चक्षुदर्शन अचक्षुदर्शन अवघिदर्शन और केवलदर्शन ये चार भेद दर्श| नोपयोगके हैं। मतिज्ञान आदिके लक्षणोंका पहिले विस्तारसे वर्णन कर दिया गया है। तथा 'अवग्रह
ज्ञानसे दर्शनपदार्थ भिन्न नहीं इस शंकाका खंडनकर उसकी भिन्नता अच्छी तरह ऊपर सिद्ध कर दी हूँ गई । जो पुरुष छैनस्थ अल्पज्ञानी हैं उनके पहिले दर्शन पीछे ज्ञान इसप्रकार ज्ञान और दर्शनका होना है क्रमसे माना गया है और भगवान केवलीके उन दोनोंका एक साथ होना स्वीकार किया गया है॥९॥
| आत्माके परिणामस्वरूप और समस्त आत्माओं में सामान्यरूपसे रहनेवाले उपयोगगुणसे युक्त उपDil योगी जीवोंके दो भेद हैं, इस बातको सूत्रकार बतलाते हैं
PUCCESONSIBEEGREMIUCHECEMNAGAR
१-दसणपुच्वं गाणं छदमत्थाणं ण दोगिण उवोगा । जुगवं जमा केवलि गाहे जुगवं तु ते दोवि ॥४४॥ ___ छमस्य जीके दर्शनपूर्वक ज्ञान होता है क्योंकि छयस्थोंके ज्ञान और दर्शन ये दोनों उपयोग एक समयमें नहीं होते तथा जो केवली भगवान हैं उनके शन तया दर्शन ये दोनों ही उपयोग एक समय में होते हैं। इसका भी कारण यह है कि जो ज्ञान मन पूर्वक होता है वह क्रमसे ही होता है । अतींद्रिय ज्ञान युगपत् होता है। इसलिये संसारी जीवोंका शान क्रमसे होता है। केवलीके युगपत् होता है। द्रव्यसंग्रह।
A