Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
४ा अध्याय
RESOUREGAR
सुखग्रहणहेतुत्वात्स्थूलमूर्तित्वादुपकारभूयस्त्वाच्चादौ पृथिवीगृहणं ॥ २॥ पृथिवी पदार्थके विद्यमान रहते घडे कलश आदिसे जलका सुख पूर्वक ग्रहण होता है । सरवा 5II (मृतपात्र) आदिसे अग्निका और चर्मघट-मुसक आदिसे पवनका सुखपूर्वक ग्रहण होता है इसलिये
घडे आदि पदार्थों के द्वारा जल आदिके सुखपूर्वक ग्रहण करनेमें पृथिवी कारण है । विमान मकान || प्रस्तार आदि स्थूल परिणाम भी पृथिवीके ही हैं इसलिये सब पदार्थोंमें पृथिवीकी ही मूर्ति स्थूल है तथा || जलसे स्नान आदिका करना उपकार माना है अग्निसे पकाना सुखाना और प्रकाश करना आदि, all पवनसे खेद पसीना आदिका दूर करना और वनस्पतिसे भोजन वस्र आदि उपकार माना है परंतु जल FI आदिसे होनेवाला यह समस्त उपकार पृथिवीके विद्यमान रहते ही हो सकता है क्योंकि विना पृथिवीके BI जल आदि किस जगह रह कर उपकार कर सकते हैं ? इसलिये जल आदिकी अपेक्षा पृथिवीका ही
बहुत बडा उपकार है । इसप्रकार जल आदिके सुखपूर्वक ग्रहणमें कारण स्थूल मूर्तिवाली और अधिक || उपकारवाली होनेके कारण सूत्रमें जल आदिकी अपेक्षा सबसे पहिले पृथिवी शब्दका ही उल्लेख किया हूँ गया है।
तदनंतरमपां वचनं भूमितेजसाविरोधादाधेयत्वाच्च ॥३॥ तेज, भूमिका नाशक है इसलिये भूमि और तेजके वीचमें जलका व्यवधान किया गया है इस प्रकार पृथिवी और तेजके विरोधके कारण तथा जलकी आधार पृथिवी है और आधेय जल है इसलिये जलके आधेय होनेके कारण पृथिवीके वाद जलका उल्लेख किया गया है।
। ततस्तेजोगृहणं तत्परिपाकहेतुत्वात् ॥ ४॥
1६४१